Saturday, January 18, 2020

भारतीय किसान


भारतीय किसान


भारतीय किसान
भारतीय किसान


    
त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान. वह जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है.  तपती धूप, कड़ाके की ठंड और मूसलाधार बारिश भी इसकी इस साधना को तो नहीं पाते. हमारे देश की लगभग 70% आबादी आज भी गांव में निवास करती है. जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि है. एक कहावत है कि, भारत की आत्मा किसान है, जो गांव में निवास करते है. किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेज कर रखे हुए हैं. 

यही कारण है कि, शहरों की अपेक्षा गांव में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है. किसान की कृषि ही शक्ति है और उसकी यही भक्ति है...

वर्तमान संदर्भ में हमारे देश में किसानआधुनिक विष्णु है. जो देश भर को फल, साग-सब्जी आदि दे रहा है. लेकिन बदले में उसे उसका परिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है. प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभाव में ही गुजरा है. किसान मेहनती होने के साथ साथ सादा जीवन व्यतीत करने वाला होता है. समय अभाव के कारण, उसकी आवश्यकताये भी बहुत सीमित होती है. उसकी सबसे बडी आवश्यकता पानी है. यदि समय पर वर्षा नही होती है, तो किसान उदास हो जाता है. 

इनकी दिनचर्या रोजाना एक सी ही रहती है. किसान ब्रहमुहूर्त में सजग प्रहरी कि भाति जग उठता है. वह घर में नही सो कर वहा सोता है, जहां उसका पशुधन होता है. उठते ही पशुधन की सेवा, इसके पश्चात अपनी कर्मभूमि खेत की ओर खुद ब खुद उठ जाते है. उसका स्नान, भोजन तथा आराम आदि जो कुछ भी होता है वह एकांत वन स्थल होता है.

वह दिनभर कठोर परिश्रम करता है. स्नान भोजन आदि अक्सर वह खेतो पर ही करता है. साझ ढलते समय वह कधे पर हल रख बैलो को हाकता हुआ घर लौटता है. कर्म भूमि मे काम के दौरान किसान चिलचिलाती धूप के दौरान तनिक भी विचलित नही होता.
इसी तरह मुसलाधार बारिश या फिर कडाके कि ठंड की परवाह किए बगैर किसान अपनी कृषि कार्य में जुड़ा रहता है.

किसान के जीवन में विश्राम के लिए कोई जगह नहीं है. वह निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है. कैसी भी बांधा उसे अपने कर्तव्य से डिगा नहीं सकती. अभाव का जीवन व्यतीत करने के बावजूद वह संतोषी प्रभावी का होता है. इतना सब कुछ करने के बाद भी वह अपने जीवन की आवश्यकताएं पूरी नहीं कर पाता. भाव में उत्पन्न होने वाला किसान अभाव में जीता है और अभाव में इस संसार से विदा ले लेता है.

अशिक्षा, अंधविश्वास तथा समाज मे व्याप्त कुरीतिया उसके साथी है. सरकारी कर्मचारी, बड़े जमींदार, बिचौलिया तथा व्यापारी उसके दुश्मन है. जो जीवन भर का शोषण करते रहते हैं. आज से 35 वर्ष पहले के किसान और आज के किसान बहुत अंतर आया है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात किसान के चेहरे पर खुशी देखने को मिली है. अब कभी कभी उसके मलिन मुख पर भी ताजगी दिखाई देले लगती है. जमीदारो के शोषण से तो उसे मुक्ति मिल चुकी है, परंतु वह आज भी पुर्ण रूप से सुखी नही है. आज भी 20 या 25% किसान ऐसे है जिनके पास दो समय का भोजन नही है. शरीर पर कपडे नही है. टूटे फूटे मकान और टूटी हुई झोपडिया आज भी उनके महल बने हुये है.

हालाकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किसान के जीवन में कुछ खुशियां लौटी हैं. सरकार ने ही किसानों की ओर ध्यान देना शुरू किया है. उनके अभावों को कम करने के प्रयास में कई योजना सरकार द्वारा चलाई जा रही है. 

भारतीय किसान
भारतीय किसान


किसानो को समय समय पर गावो मे ही कार्य शाला आयोजित कर कृषि विशेषज्ञो द्वारा कृषि क्षेत्र मे हुए नये अनुसधानो कि जानकारी दी जा रही है. इसके अलावा उन्हे रियायती दर पर उच्च स्तर के बीज, आधुनिक कृषि यंत्र, खाद आदि उपलब्ध कराये जा रहे है. 

उनकी आर्थिक रूप से सुधार हो रहा है और ऋण मुहैया कराया जा रहा है. खेतों में सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कराया जा रहा है. उन्हे शिक्षित करने के लिए गावो मे रात्र मे स्कूल खोले जा रहे है. इस सब कारणो के चलते किसान के जीवन स्तर मे काफी सुधार आया है.

जय जवान जय किसान...

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