फूलो की खेती
फूलो की खेती
खेती फायदे का सौदा नही है. पूर्वाचल मे उद्योग
धंधे है नही. ऐसे मे युवक पढाई पूरी करने के बाद दूसरे शहरो मे जाकर कामकाज करने
लगते है. हथियाराम गांव निवासी राजू खरवार ने पढाई पूरी करने के बाद खेती को ही
कैरियर बनाया लेकिन लीक से हटकर खेती करने की ठानी ! आज फूलो की खेती से वह अच्छी
आय ले रहे है.
सिध्दपीठ हथियाराम मठ के पास रहने वाले राजू
खरवार ने इंटरमीडिएट के बाद कंप्यूटर से डिप्लोमा किया. उन्होने देखा की हथियाराम
मठ के पास फूल माला एवं प्रसाद कि दुकाने थी. फूल लेनेके लिए दुकानदारो को वाराणसी
तक जाना पड्ता था. इसको देखते हुए राजू ने क्षेत्र मे ही फूल की खेती करने की
ठानी. फिर क्या था जहा उम्मीद वही मंजिल नजर आने लगी. युवक राजू ने पडोस के गांव
बुढानपुर निवासी कुछ किसानो से लगभग 5 एकड
खेत किराए पर लिया.
उसने जुलाई माह मे प.बंगाल के कोलकाता से गेदे के फूल का बीज
मंगाकर रोपा करवाया. पौधरोपण के साठ दिन बाद से गेंदे के फूल निकलने लगे.इतने फूल
हो जाते थे, जिनसे रोजाना 500 बडी माला बन जाती थी.
05 एकड खेत किराए पर लेकर शुरू की खेती
कुछ ही
दिनो मे इसकी आपूर्ती स्थानीय सिध्दपीठ से लेकर वाराणसी तक होने लगी. दीपावली तक
लगातार फूलो की आपूर्ती कर राजू ने इतना लाभ कमा लिया कि खेत का किराया, बीज आदि का खर्च तो निकल ही गया उनके साथ काम
करने वाले 4 स्थानीय लोगो के साथ माला बनाने वाली महिलाओ का भी खर्च आ गया.
60 दिन बाद गेंदे के पौधे मे फूल निकलते है
पुराने संघर्षो को याद करते हुए राजू बताते है
कि जुलाई माह मे पौधे रोपण के बाद रखरखाव के लिए 4 कर्मचारी रखे थे. खेत मे
रासायनिक उर्वरक नाममात्र का दिया था. आज भी खेतो मे अधिकतर जैविक एवं गोबर की खाद
डालता हू. समय-समय पर कीटनाशक आदि का छिडकाव किया जाता है. जुलाई मे लगाए गए फूल
जनवरी मे समाप्त हो जाएगे, उसके बाद के फूल के लिए अभी दूसरी नर्सरी डाली
जा चुकीहै.