Tuesday, April 30, 2019

नरेंद्र मोदी


Narendra Modi:-

नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के छोटे कब्जे वार्ड नगर में, दामोदरदास मूलचंद मोदी और हीरा बहन के यहां हुआ था.


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नरेंद्र मोदी



नरेंद्र मोदी पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर की संतान है. नरेंद्र मोदी के पिता की रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान थी! 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने स्टेशन से गुजर रहे सैनिकों को चाय पिलाई. नरेंद्र मोदी बचपन में आम बच्चों से बिल्कुल अलग थे, वह ऐसे गरीब परिवार में पहले भरे जो ₹1 भी नहीं बचा पाता था.


जीवन की आरंभिक कठिनाइयों ने उन्हें ना सिर्फ कठोर परिश्रम के मूल की समृद्धि बल्कि इसके साथ ही आम लोगों की पीड़ा समझने का मौका भी दिया, यही कारण है कि मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अंत्योदय अर्थात अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की सेवा करने के सिद्धांत का अनुकरण करते हुए जीवन जिया है.
उन्होंने छोटी उम्र से ही देशभक्त संस्थाओं के साथ काम कर अपने आप को देश सेवा में समर्पित कर दिया. वह एक ऐसे नेता है, जो लोगों के कल्याण के लिए समर्पित हैं.


नरेंद्र मोदी के लिए इससे सुखद और कुछ नहीं कि, वे आम लोगों के बीच रहे उनकी खुशहाली देखें और उनके दुखों को दूर करें उनकी मजबूत ऑनलाइन थी. जहां भारत के ऐसे सार्वजनिक पर योगिक सोच रखने वाले नेता, के रूप में जाने जाते हैं. जो योगी का इस्तेमाल लोगों से जुड़ने और उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए करते हैं.


 फेसबुक,ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया पर काफी है. नरेंद्र मोदी का एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है, जो मजबूत खुशहाल और समावेशी हो और जहां प्रत्येक भारती अपनी आकांक्षाओं को भली भूत होते हुए देख सकता हो. नरेंद्र मोदी ने चौथी बार पश्चिमी राज गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भारत और विश्व भर में अपनी छाप छोड़ी है. इस राज में वजन हितेषी सुशासन द्वारा लोगों के जीवन में भारी बदलाव लाएं, जहां सरकार ने सादगी और ईमानदारी से लोगों की सेवा की उन्होंने विनाशकारी भूकंप के दुष्परिणामों से जूझ रहे गुजरात की कायापलट की और उसे विकास में आगरी बनाया जिसे भारत के शूरवीर विकास में मजबूत योगदान दिया...


हमेशा आगे बढ़ने वाले और गुजरात के चौमुखी विकास के लिए काम करने वाले श्री नरेंद्र मोदी ने राज भर में मरा बुनियादी ढांचा तैयार किया है. नरेंद्र दामोदरदास मोदी स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री हैं, तथा इस पद पर आसीन होने वाले वतन भारत में जन्में प्रथम व्यक्ति हैं नरेंद्र मोदी का 26 मई 2014 से भारत के प्रधानमंत्री का कार्यकाल राष्ट्रपति भवन पर आयोजित हुआ.

Narendra Modi

मोदी के साथ में पद और गोपनीयता की शपथ ली उनके नेतृत्व में भारत की पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने लोकपाल लोकसभा चुनाव लड़ा और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश के वाराणसी क्षेत्र से चुनाव जीत दर्ज की गुजरात में मुख्यमंत्री रहे, उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार चार बार मुख्यमंत्री चुना.


नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में मैनेजमेंट क्यों पब्लिक रिलेशन से संबंधित 3 महीने का कोर्स किया नरेंद्र मोदी अपने आप को एक लेखक और कवि मानते हैं.

उन्होंने गुजराती भाषा में हिंदुओं से संबंधित कई लेख भी लिखे हैं. मोदी महान विचारक और युवा दर्शनी संत स्वामी विवेकानंद से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं, उन्होंने गुजरात में विवेकानंद युवा विकास यात्रा निकाली थी. नरेंद्र मोदी शाकाहारी है, उन्होंने सिगरेट शराब को कभी हाथ भी नहीं लगाया है.

नरेंद्र मोदी छोटी छोटी बातों का भी बहुत ध्यान रखते हैं, जैसे भाषण से पहले उसकी तैयारी करना बालों कपड़ों की स्टाइल नरेंद्र मोदी समय के बड़े बहुत बड़े पाबंद हैं. नरेंद्र मोदी सिर्फ सारे 3 घंटे की नींद लेते हैं, और वह सुबह 5:30 बजे उठ जाते हैं. नरेंद्र मोदी स्वभाव से आशावादी व्यक्ति हैं, एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा था, कि लोगों को आधा गिलास पानी से भरा नजर आता है. लेकिन मुझे आधा गिलास पानी और आधा हवा से भरा नजर आता है.



नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कई देशों की यात्राएं की जिन प्रमुख है. उन्होंने चीन के विकास को बहुत करीब से देखा है, गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने वाइब्रेट गुजरात समिट आयोजन कर देश और विदेश के उद्योगपतियों को निवेश के लिए आकर्षित किया पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन को गुजरात का ब्रांड एम्बेसडर बनाया.
अमिताब बच्चन ने इसके बदले एक पैसा भी नहीं लिया. बंगाल के सिंदूर में टाटा के नैनो कार के प्लान के विरोध के बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात नरेंद्र मोदी ने टाटा के एक मैसेज देकर उन्हें गुलजार के प्लांट लगाने के लिए आमंत्रित किया है.



 “वेलकम टू गुजरात”  गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के विकास के लिए बहुत सारी योजनाएं निकाली है. जिसमें राज के लोगों को लाभ मिलता है.


राज में जच्चा बच्चा के कल्याण के लिए बनाई गई योजना को क्या नाम दिया गया बेटी बचाओ”.

 राज के प्रत्येक गांव में बिजली पहुंचाने की योजना को “ज्योति ग्राम” के नाम से जाना जाता है.

MANN KI BAAT/ PM MODI

और बहुत सारी योजनाएं हैं. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का यह विश्वास है, कि पारदर्शिता और जवाबदेही किसी भी जन हितेषी सरकार के दो आधार स्तंभ है.
पारदर्शिता और जवाबदेही ना केवल लोगों को और करीब लाकर सरकार से जोड़ते हैं, बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें सामान्य रूप से आम भागीदार भी बनाते हैं.


मुख्यमंत्री के रूप में अपने चार कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने खुले और पारदर्शी शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई. नियम और नीतियां चैनलों में बैठकर नहीं बल्कि लोगों के बीच जाकर बनाई गई.

लोगों के लिए नीतियों के मसूदे ऑनलाइन किए गए ताकि अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे सकें. इसके साथ ही गरीब कल्याण मेले से पहले की गई ताकि लालफीताशाही के विकास के लाभ गरीबों तक पहुंच सके.


Wednesday, April 10, 2019

दहेज प्रथा


  आज दहेज की प्रथा को देश भर में बुरा माना जाता है ! इसके कारण कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं, कितने घर बर्बाद हो जाते हैं. आत्महत्याएँ भी होती देखी गई है.



दहेज प्रथा
दहेज प्रथा



 नित्य प्रतिदिन तेल डालकर बहू द्वारा अपने आप को आग लगाने की घटनाएं भी समाचार न्यूज़पत्र और टीवी में देखी वह पढ़ी जाती हैं.  पति और सास ससुर बहु जला देते हैं हत्याएं कर देते हैं इसलिए दहेज प्रथा को आज कुरीति माना जाने लगा है.

एक पुरुष के जीवन में स्त्री शीतल जल की तरह होती है जो उसके जीवन को अपने प्यार और सहयोग से सुखी और शांतिपूर्ण बनाती है। लेकिन आज भारत के समाज में जो अनेक कुरीतियाँ फैली हुई हैं वो सब भारत के गौरवशाली समाज पर एक कलंक के समान हैं।
जाति, छूआछूत और दहेज जैसी प्रथाओं की वजह से ही विश्व के उन्नत समाज में रहने पर भी हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। समय-समय से कई लोग और राजनेता इसे खत्म करने की कोशिश करते रहते हैं, लेकिन इसका पूरी तरह से नाश नहीं हो पाया है। दहेज प्रथा दिन--दिन और अधिक भयानक होती जा रही है. 
भारतीय समाजिक जीवन में अनेक अच्छे गुण हैं, परंतु कुछ बुरी नीतियां भी उनमें घुन की भांति लगी हुई हैं. इनमें एक  रीति दहेज प्रथा की भी है
विवाह के साथ ही पुत्री को दिए जाने वाले सामान को दहेज कहते हैं. इस दहेज मे बर्तन, वस्त्र, पलंग, सोफा रेडियो, मशीन, टेलीविजन आदि  की बात ही क्या है, हजारों रुपए नकद भी दिए जाते हैं.इस  दहेज को पुत्री के स्वस्थ शरीर सौंदर्य और सुशीलता के साथ ही जीवन को सुविधा देने वाला माना जाता है. दहेज प्रथा का इतिहास देखा जाए तब इसका प्रारम्भकिसी बुरे उद्देश्य से  नहीं हुआ था. 
प्राचीनकाल में बेटी को माता-पिता के आशीर्वाद के रूप में अपनी समर्थ शक्ति के अनुसार वस्त्र, गहने, और उसकी गृहस्थी के लिए सामान भेंट में दिया जाता था। इस दहेज का उद्देश्य वर वधु की गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाना था। प्राचीनकाल में लडकी का मान-सम्मान ससुराल में उसके व्यवहार और संस्कारों के आधार पर तय किया जाता था कि उसके लाए हुए दहेज पर।

दहेज प्रथा का उल्लेख मनुस्मृति में ही प्राप्त हो जाता है, जबकि वस्त्राभूषण युक्त कन्या के विवाह की चर्चा की गई है. गौएँ  तथा वाहन लेने का उल्लेख किया गया है

समाज में जीवन उपयोगी सामग्री देने का भी मनुस्मृति में वर्णन  किया गया है, परंतु कन्या को दहेज देने के 2 प्रमुख  कारण थे
पहला तो यह कि माता-पिता अपनी कन्या को दान देते समय सोचते थे कि वस्त्र आदि  सहित कन्या को कुछ सामान दे देने उसका जीवन सुविधा पूर्वक चलता रहेगा, और कन्या को अपने जीवन में कोई कष्ट ना हो. 
दूसरा कारण था कि, घर में अपने भाइयों के समान भागीदारी है चाहे वह अचल संपत्ति नहीं लेती थी, परंतु विवाह  के काल में उसे यथाशक्ति धन, पदार्थ दिया जाता था, ताकि वह सुविधा  से जीवन व्यतीत कर के और इसके पश्चात भी उसे जीवन भर सामान मिलता रहता था !  घर भर में उसका सम्मान हमेशा बना रहता था

पुत्री  जब भी पिता के घर आती थी उसे अवश्य ही धन आदि दिया जाता था. इस प्रथा के दुष्प्रभाव से भारत के इतिहास में घटनाएं भरी पड़ी हैं और निर्धन व्यक्तियों को दहेज देने ना देने की स्थिति में दोनों में कष्ट सहने पड़ते रहे. दहेज ना देने से दुख भोगना पड़ता है. समय में इस सामाजिक उपयोगिता की धीरे धीरे अपना बुरा रुप  धारण करना आरंभ कर दिया है. और लोगों ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के लिए भरपूर धन देने की प्रथा चला दी

इस प्रथा को खराब करने का आंरभ धनी वर्ग से  ही हुआ है, क्योंकि धन की चिंता नहीं होती और अपनी लड़कियों के लिए लड़का खरीदने की शक्ति रखते हैं. इसलिए दहेज प्रथा ने बुरा रूप धारण कर लिया और समाज में या कुरीति सी बन गई

अब इसका निवारण दुश्वार हो रहा है. नौकरी पेशा या निर्धनों को इस प्रथा से अधिक कष्ट पहुंचता है. अब तो बहुत से लड़के को बैंक का एक चेक मान लिया जाता है, कि जब लड़की वाले आए तो उसकी खाल  खींचकर पैसा इकट्ठा कर लिया जाए, ताकि लड़की का विवाह कर देने के साथ ही उसका पिता बेचारा कर्ज से ही दबा जाए

दहेज प्रथा को सर्वदा बंद नहीं किया जाना चाहिए परंतु कानून बनाकर एक निश्चित मात्रा तक दे देना चाहिए

अब तो पुत्री और पुत्र का पिता की संपत्ति में समान भाग स्वीकार किया गया है इसलिए भी दहेज को कानूनी रूप दिया जाना चाहिए. और लड़कों को माता-पिता द्वारा मनमानी धन दहेज लेने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए

जो लोग दहेज में मनमानी कर रहे उन्हें दण्ड देकर इस दिशा में सुधार करना चाहिए. दहेज प्रथा को भारतीय समाज के माथे पर कलंक के रूप में नहीं रहने देना चाहिए.

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा अन्य सम्बन्धियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें-शादी होगी तो बिना दहेज के होगी  

इन युवकों को चाहिए कि वे उस सम्बन्धी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देते है