Monday, July 12, 2021

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या


   देश मे बढ़ रही बेरोजगारी की समस्या को हल नहीं किया गया तो देश मे सामाजिक असंतोष फैल सकता है । यह कहना था योजना आयोग के उपाध्यक्ष कृष्ण चंद पंत का । उनके द्वारा कही गई यह बात वर्तमान को देखते हुए सत्य बैठती है । किसी भी देश के लिए बेरोजगारी एक भयंकर समस्या है । रोजगार व्यक्ति जहा समाज मे उत्पादन वृद्धि मे योगदान करता है, वही बेरोजगार व्यक्ति अर्थ व्यवस्था पर बोझ बन जाता है । बेरोजगारी का सबसे बुरा पक्ष सामाजिक है । बेरोजगारी मनुष्य के आत्मविश्वास को खत्म कर उसमे हीनता को जन्म देती है । इस प्रकार मनुष्य निराशावादी हो जाता है, और उसके मन मे समाज के प्रति आक्रोश उत्पन्न होने लगता है । बाद मे यही आक्रोश उसके सामाजिक असंतोष का कारण बनता है ।

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या 



   बेरोजगारी के कारण जब किसी व्यक्ति के समक्ष भूखों मरने की नौबत आ जाती है, तो वह व्यक्ति कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है । देश मे लूटपाट, चोरी, डकैती, हत्या, फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराधों मे बढ़ोत्तरी बेरोजगारी के कारण ही हो रही है । यही नहीं बेरोजगारी के कारण ही लोग भिक्षावृत्ति एव वैश्यावृत्ति जैसी अमानवीय वृत्ती को अपनाने के लिए मजबूर हो रहे है । हमारे देश मे बेरोजगारी मे विस्फोटक ढंग से  वृदधि हुई है । वर्ष 1951 मे देशभर मे बेरोजगारों की संख्या 33 लाख थी । वर्ष 1961 मे 90 लाख हो गई । इस तरह देश मे बेरोजगारी की संख्या मे लगातार वृद्धि हो रही है, और अब इनकी संख्या 25 करोड़ से भी अधिक है। बेरोजगारी बढ़ने का सबसे बडा कारण उत्पादन का केन्द्रीकरण ढाचा है । यही केन्द्रीकरण ढ़ाचा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फलते फूलने का सबसे मजबूत आधार है ???


   90 के दशक के शुरुआती वर्षों मे हमारे देश मे उदारीकरण का दौर शुरू हुआ । इसके बाद से विश्व बैक और मुद्रा कोष के इशारे पर आर्थिक नीतिया निर्धारित की जाने लगी । इन नई आर्थिक नीतियो की जड़ मे ही बेरोजगारी समाई हुई है । नई आर्थिक नीतियों के मूल मे भारी पूंजी निवेश, व्यापार का वैस्वीकारण, निर्यात पर जोर, अधिक से अधिक मुनाफा कमाना और व्यवस्था का केन्द्रीकरण है । इन नीतियों के कारण उत्पादन मे तो वृध्दि हुई लेकिन रोजगार के अवसर घटते गए । आज किसी सरकारी उपक्रम मे खर्चों मे कमी, करने की जब बात चलती है तो, छटनी के रूप मे सबसे पहले गज मजदूरों पर ही गिरती  है । दूसरी बात यह है, की पूंजी निवेश की वजह से सरकार एव कंपनियों पर ॠण बढ़ता रहता है । सरकारे घाटे की अर्थव्यवस्था चलती है, जो रोजगार मे बाधक होती है ।


   तीसरी दुनिया के अधिकांश देश आज कर्ज मे डूबे हुए है । इनसे मुक्ति पाने के लिए विश्व बैक और मुद्रा कोष ने एक ढचागत समायोजन कार्यक्रम 1981-82 मे लागू किया । हमारे देश मे यह कार्यक्रम 1991 मे लागू हुआ । इस कार्यक्रम के तहत बजट मे कटौती तथा सार्वजनिक विकास मे कटौती मुख्य है


1991 के बाद से बेरोजगारी की समस्या बढ़ती चली गई । पिछले कुछ वर्षों से रोजगार के अवसर अचानक कम हुए है सरकारी प्रतिष्ठानों मे न केवल भरतिया बंद है बल्कि छटनी कार्यक्रम चल रहा है । निजी क्षेत्र मे मशीनों के नवीनीकरण और आटोमेशन के चलते नए रोजगार बहुत कम पैदा हो रहे है । इन सबके आलावा रही सही कसर सरकार ने श्रम कानूनों मे संशोधन करके पूरी कर दी ।


   वर्तमान अर्थव्यवस्था की मार सबसे अधिक विकासशील देशों पर पड रही है । विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनिया विश्व बैक और मुद्रा का पूरा लाभ उठा रही है । इन कंपनियों ने विकास शील देशों मे विकास का नारा देकर तेजी से पैर पसारे लेकिन इन्होंने विकास शील देशों की अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर डाला। इन कंपनियो ने अपने उत्पाद से बाजार को पाटने के लिए विकास शील देशों की स्वदेशी उत्पादन पध्दती को नष्ट कर दिया ।

बेरोजगारी खत्म करने के लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है जो किसी भी राजनैतिक दल मे दिखाई नहीं देती । बेरोजगारी को लेकर राजनीतिक पार्टिया द्वारा चिंता तो जताई गई लेकिन जमीनी स्तर पर इस ओर किसी भी पार्टी ने काम नही किया । कोर नारेबाजी से बेरोजगारी का समाधान नहीं होगा । इसके लिए सरकार को दृढ़ता से प्रयास करने होगे । यदि बेरोजगारी बढ़ने की यही गति रही और उसे रोका नहीं गया तो इस कारण बढ़ने वाला असंतोष देश के सामने विकट रूप उत्पन्न कर सकता है ।


   देश की गंभीर समस्याओ मे एक समस्या बेरोजगारी भी है । इसमे भी युवा वर्ग की बेकारी विशेष स्थान रखती है । युवा वर्ग की बेकारी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या है । जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है उस अनुपात मे रोजगार के साधन नहीं बढ़ पा रहे है । एक सर्वेक्षण के अनुसार देश मे प्रतिवर्ष 80 से 90 लाख बच्चे जन्म लेते है । रोजगार के अवसर दिलाना सरकार ही नहीं किसी के बूते की बात भी नहीं है ।


बेरोजगारी और युवा 


जनसंख्या वृध्दि के लिए निमनवर्ग के समाज को दोषी ठहाराया जाता है जो अपने लिए दो समय की रोटी का जुगाड़ भी नहीं कर पाता । झुग्गी बस्तियों मे किसी तरह रहकर वह अपनी गुजर बसर करता है। बावजूद इसके संतान उत्पाती पर ध्यान नहीं देता । ठीक इसके विपरीत शिक्षति लोग जनसंख्या नियंत्रण मे विश्वास रखते है और अधिक संतान से परहेज रखते है। बढ़ती जनसंख्या के कारण ही देश मे अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा है । देश मे शिक्षा की ओर ध्यान देने से दूर दराज के इलाके मे स्कूल तो खुल गये लेकिन इन स्कूलों से शिक्षित होकर निकले युवाओ को रोजगार नहीं मिल प रहे । इनके अलावा विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों से पर्तीवर्ष हजारों युवक डाक्टर, इंजीनियर, वास्तुकार आदि बनकर निकलते है लेकिन ज्यादातर को रोजगार नहीं मिल पाता ।


बेरोजगारी के बढ़ती समस्या 


   शिक्षित होने के कारण आज के युवा कृषि कार्य करना उचित नहीं समझते यदि वे अपने गावों मे ही रहकर कृषि क्षेत्र मे अपनी शिक्षा का प्रयोग करे तो वे अपने खेतों से ज्यादा उपज प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त कर सकते है । शहरों की चकाचौध देख वे गावों से पालायन करते जा रहे है । शहरों मे आने पर रोजगार न मिलने की के कारण गलत कार्यों मे लग जाते है । जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता है । युवा वर्ग की बेकारी का कारण सरकारी नीतिया भी है । सरकारी कार्यालयों मे कई पद वर्षों से खाली पड़े रहते है । सरकारी अधिकारियों व लाल फ़ीताशाही के कारण इन पदों पर नियुक्तिया नहीं हो पाती । आरक्षण भी बेरोजगारी की एक वजह है । आरक्षित पद के लिए उम्मीदवार नहीं मिलने पर उसे सामान्य वर्ग कर दिया जाना चाहिए लेकिन इसमे भी सरकारी नीतिया आड़े आती है ।

 

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Wednesday, July 7, 2021

बोलती टोपी

बोलती टोपी हिन्दी निबंध 


एक गरीब किसान अपनी बीमार माँ के साथ रहता था । उसका नाम तोरोकू था । तोरोकू दिन भर खेत पर काम करता। फिर भी अपने और बीमार माँ के लिए खाना न जुटा पाता था । इसलिए वह दूसरों के खेत मे भी मजदूरी करता और लोगों का बोझा ढोता ।

बोलती टोपी


एक दिन बहुत तूफान तथा बारिश आने की आशंका थी । उसी दिन तोरोकू को अपने गाव के बढ़ाई के घर से दूसरे ग़ाव के मुखिया के यहा एक बक्सा पहुचाना था । मुखिया की बेटी की शादी थी । वह बक्सा उसी के लिए बनवाया गया था।


तोरोकू को बीमार माँ ने ऐसे मौसम मे घर से बाहर जाने से मना किया, लेकिन उसने एक न मानी । उसकी जिद देखकर माँ ने उसे एक पुरानी टोपी निकालकर देते हुए कहा – बेटा, यह तुम्हारे पिताजी की एकमात्र निशानी है। इसे पहनकर जाओ । शायद यह इस तूफान और बरसात मे तुम्हारी मदद कर सके।


तोरोकू ने उस टोपी को पहना और बक्सा को पीठ पर लादकर चल दिया । रास्ते मे उसे थोड़ी थकान महसूस हुई । बक्से को पीठ से उतार, वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा । अचानक उसे किसी की बाते करने की आवाज सुनाई देने लगी ।


ये आवाजे कहा से आ रही है ? कोई दिखता क्यों नहीं ?


उसने चिल्लाकर कहा और झूझलाहट मे अपनी टोपी सिर से उतार दी । अब उसे बाते सुनाई देना बंद हो गई । थोड़ी देर बाद जब तोरोकू ने फिर से टोपी पहनी, तो उसे बाते फिर सुनाई देने लगी ।

कमाल है, टोपी पहनते ही मै चिड़िया, पेड़ों, नदी-पहाड़ों की बाते सुन सकता हू और समझ भी सकता हू । सोचते हुए वह बक्सा पीठ पर लादकर मुखिया के ग़ाव की ओर चल पड़ा ।


देखो, न तोरोकू जिस लड़की का बक्सा पहुचने जा रहा है, वह बहुत दिनों से बीमार है । उसका पिता बहुत चितित है । उसके ब्याह की तारीख भी नजदीक आ रही है । बहुत इलाज कराने के बाद भी उसकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही है । एक चिड़िया बोली तोरोकू धीमी गति से चलता ध्यान से चिड़ियों की बाते सुनने लगा ।

हा, लेकिन मुखिया के बगीचे मे एक कपूर का पेड़ है । लड़की को ठीक करने का इलाज इस कपूर के पेड़ के पास है । लेकिन पेड़ों की बाते भला मनुष्य कहा समझ पायेगे ? दूसरी चिड़िया ने कहा ।


यह सुनकर तोरोकू के मुह से निकला मै, मै समझूगा ।


लेकिन, काश ! चिड़िया तोरोकू के उत्साह को समझ सकती । उन्हे न तो मनुष्य की भाषा आती थी, और न ही उनके पास तोरोकू जैसी चमत्कारी टोपी थी । इस तरह तोरोकू नदी, पहाड़, पेड़, चिड़ियों की बाते सुनता, मस्ती से मुखिया के घर पहुचा । तोरोकू ने मुखिया को बताया की अगर वह उसे एक दिन अपने घर ठहरने की इजाजत दे, तो वह उसकी बेटी की बीमारी दूर कर सकता है ।

तोरोकू मुखिया के घर ठहरा और रात होने का बेताबी से इंतजार करने लगा । आखिर रात को ही तो वह पेड़ों की बाते सुन सकता था । लोगों का ऐसा मानना था, की आधी रात मे ही पेड़ आपस मे बाते करते है । तोरोकू पीछे के बगीचे मे कपूर के पेड़ के पास जाकर अपनी टोपी पहनकर चुपचाप बैठ गया । कुछ देर बाद उसे लगा की पेड़ आपस मे बाते कर रहे है। एक पेड़ बोला देखो हमारा दोस्त कपूर का पेड़ अब थोड़े ही दिनों मे मर जाएगा ।

   

दूसरा बोला बेचारा दिन प्रतिदिन सूखता जा रहा है ।


जब से मुखिया ने पीछे की पहाड़ी पर बड़ा सा पत्थर लगाकर पानी को रोका है, तब से ही यह हुआ है । तीसरा बोला ।।

चौथा पेड़ जो इतनी देर से चुपचाप सबकी बाते सुन रहा था, बोला- अरे मुखिया बहुत धूर्त है । उसने सारा पानी धान के खेत मे डाल दिया है ।

 वह मूर्ख यह नहीं जानता की कपूर के पेड़ के सूखने की वजह से ही उसकी बेटी बीमार है । पाचवा बोला ?


हा, एक दिन कपूर के पेड़ की तरह हम भी सूखकर मर जायेगे ।

लेकिन हमारी कोई नहीं सुनेगा । कौन करेगा हमारी देखभाल ?

उनमे से एक बुजुर्ग पेड़ भारी स्वर मे गहरी सासे लेते हुए बोला ।


तोरोकू जो इतनी देर से पेड़ों की बाते सुन रहा था , तुरंत बोल पडा मै करउगा, मै करउगा तुम लोगों की देखभाल ।।

सुबह की लालिमा पूरब की पहाड़ी से छिटकने लगी थी । तोरोकू उठकर पेड़ों की बताई गई पहाड़ी की तरफ चल पडा । वहा जाकर उसने देखा की सचमुच वहा पर बड़ा सा पत्थर पानी को बगीचे मे जाने से रोक रहा था । तोरोकू पत्थर हटाने की कोशिश करने लगा । लेकिन पत्थर इतना बड़ा था, की हिलने का नाम तक न लिया। तोरोकू अपनी ओर से पूरा जोर लगाकर पत्थर को हटाने की कोशिश करता रहा ।


अबे मूर्ख, यह क्या कर रहा है ? इससे मेरे सारे खेत सूख जायेगे । यह कहकर वह तोरोकू को वहा से हटाने लगा, परंतु तोरोकू कहा मानने वाला था ? जिद्दी तो वह था ही।


उसने पूरा जोर लगाया और पत्थर दूसरी ओर ढलान से लुढ़कता हुआ दूर जा गिरा । बगीचे की तरफ पानी बहने लगा । पानी का बहाव इतना तेज था, की मुखिया उसके साथ बगीचे तक बहता चला गया । मुखिया को काफी चोट आई ।

कुछ ही दिनों मे कपूर का पेड़ लहलहाने लगा, और उसके साथ के पेड़ भी हरे भरे हो गए । कपूर के पेड़ की खुशबू वातावरण मे दूर-दूर तक फैलने लगी । मुखिया की बेटी भी ठीक हो गई । तोरोकू एक दिन अपनी माँ को घुमाते हुए वहा ले आया । हरियाली देखकर तोरोकू की माँ भी स्वस्थ होने लगी ।

मुकिया को इस बात की काफी खुशी थी, की तोरोकू की वजह से उसकी बेटी स्वस्थ होकर अपने ससुराल जा चुकी थी । वह समझ चुका था की पानी की जरूरत केवल फसल को नहीं बल्कि अन्य सभी को है । जरूरत थी और न ही बोझा ढोने की ।

उसने अपने लिए खेत खरीदे । ढेर सारे पेड़ लगाए । तोरोकू अब दिन भर अपने खेत मे काम करता। जब थक जाता तो पेड़ों की छाया मे अपने पिता की चमत्कारी बोलती टोपी पहन पेड़ों की, चिड़ियों की, नदी नालों की बाते सुनता । कहते है, तोरोकू के ग़ाव मे फिर कभी पानी की कमी नहीं हुई ।


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Thursday, July 1, 2021

वृक्षारोपण

वृक्षारोपण 

 

   वृक्षारोपण मानव समाज का साँस्कृतिक दायित्व है तथा इसे प्रमाणित किया जा सकता है । मानव सभ्यता का उदय और आरंभिक आक्षय प्रकृति यानि वन वृक्ष ही रहे है । उसकी सभ्यता सस्कृति के आरंभिक विकास का पहला चरण भी वन वृक्षो की सघन छाया मे ही उठाया गया । 

वृक्षारोपण  


यहा तक की उसकी समृद्धतम साहित्य कला का सृजन और विकास ही वनालियों की सघन छाया और की गोद मे ही संभव हो सका, यह एक पुरातत्व एव इतिहास सिद्ध बात है । आरंभ मे मनुष्य वनों मे वृक्षो पर या उनसे ढकी कन्दराओ मे ही रहा करता था । वृक्षो से प्राप्त फल फूल आदि खाकर या उसकी डालियों को हथियार की तरह प्रयोग मे ला उनसे शिकार करके अपना पेट भरा करता था ।  


बाद मे बचे खुचे फल और उनकी गुठलियों को दुबारा उगते देखकर ही मानव ने खेती बाड़ी करने की प्रेरणा और सीख प्राप्त की । वृक्षो छाल का ही सदियों तक आदि मानव वरत्र रूप मे प्रयोग करता रहा, बाद मे वन मे रहकर तपस्या करने वालों, वनवासियों के लिए ही वे रह गए थे । इसी प्रकार आरम्भिक वैदिक ऋचाओ की रचना या दर्शन भए सघन वनालियों मे बने आश्रमों मे रहने वाले लोगों ने किए । इतना ही नहीं आरंभ मे ग्रन्थ लिखने के लिए कागज के बाजाय जिस सामग्री का प्रयोग किया गया वे भोजपत्र भी विशेष वृक्षो के पत्ते थे ।

 

सस्कृति की धरोहर माने जाने वाले कई ग्रन्थों की भोजपत्रों पर लिखी गई पाण्डुलिपिया आज भी कही कही उपलब्ध है ।

   वृक्षारोपण का सामान्य एव विशेष सभी का अर्थ है – वृक्ष लगाकर उन्हे उगाना । प्रयोजन है प्रकृति का संतुलन बना रहे । वन संपदा के रूप मे प्रकृति से हमे जो कुछ भी प्राप्त होता या रहा है, वह नियमपुर्वक हमेशा आगे भी प्राप्त होता रहे ताकि हमारे समाज जीवन का संतुलन बना रहे, पर्यावरण की पवित्रता और संतुलन नियमित बने रहे । मानव सृष्टी का सर्व प्राणी है । उसका जीवन सुखी, समृद्ध एव संतुलन रह सके, साँस्कृतिक सामाजिक एव व्यापक मानवीय दृष्टी से इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है ? निश्चय ही अन्य कोंई नहीं । इस कारण भी वृक्षारोपण करना एक प्रकार का सहज साँस्कृतिक दायित्व स्वीकार किया गया है ।

   मानव सभ्यता ने सस्कृति के विकास की दिशा मे कदम बढाते हुए गुफाओ से बाहर निकल और वृक्षो से नीचे उतर कर जब झोपड़ियों का निर्माण आरंभ किया तब तो वृक्षो की शाखाए पत्ते सहायक सामग्री बने ही, बाद मे मकानों भवनों की परिकल्पना साकार करने के लिए भी वृक्षो की लकड़ी से ही किया जा रहा है । कुर्सी, टेबिल, सोफासैट आदि मुख्यत: लकड़ी से ही बनाए जाते है । हमे अनेक प्रकार के फल फूल और औषधियों भी वृक्षो से प्राप्त होती ही है, कई तरह की वनस्पतियों का कारण भी वृक्ष ही है । इतना ही नहीं, वृक्षो के कारण ही हमे वर्षा जल एव पेयजल आदि की भी प्राप्ति हो रही है । 

   वृक्षो की पत्तियों धरती के जल का शोषण कर सूर्य किरणे और प्रकृति बादलों को बनाती है, और वर्षा कराया करती है । कल्पना कीजिए निहित स्वार्थी मानव जिस बेरहमी से वनों वृक्षो को काटता जा रहा है, यदि उस क्षति की पूर्ति के लिए साथ साथ वृक्षारोपण रक्षण न होता रहे, तब धरती के एकदम  वृक्ष शून्य हो जाने की स्थिति मे मानव तो क्या, समूची जीव सृष्टी की क्या दशा होगी ? निश्चय ही वह स्वत: ही जलकर राख का ढेर बन उड़कर अतीत की भूली बिसरी कहानी बनकर रह जाएगा ।


वृक्षारोपण के फायदे:-


   प्राचीन भारत मे निश्चय ही वृक्षारोपण को एक उदान्त साँस्कृतिक दायित्व माना जाता था । तब तो मानव समाज के पास ऊर्जा और ईधन का एकमात्र स्रोत भी वृक्षो से प्राप्त लकड़ी ही हुआ करती थी, जबकि आज कई प्रकार के अन्य स्रोत भी उपलब्ध है । इस कारण उस समय के लोग इस तथ्य को भली भाति समझते थे की यदि हम मात्र वृक्ष काटते रहेगे नहीं उगाएगे, तो एक दिन वनों की वीरानगी के साथ मानव जीवन भी वीरान बनकर रह जाएगा । इसी कारण एक वृक्ष काटने पर दो नए वृक्ष उगाना वे लोग अपना धर्म एव साँस्कृतिक कर्तव्य माना करते थे । 

   जो हो अभी भी बहुत देर नहीं हुई है । अब भी निरंतर वृक्षारोपण और उनके रक्षण के साँस्कृतिक दायित्व का निर्वाह कर सृष्टी को अकाल भावी विनाश से बचाया जा सकता है । व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर इस ओर प्राथमिक स्तर पर ध्यान दिया जाना परं आवश्यक है ।

   जैसा की आप सब जानते है है कुछ सालों से कोरोना का कहर जा रहा है, और वृक्षो के न होने से आक्सीजन को कमी काफी महसूस लगने लगी । उस व्यक्त लोगों को वृक्षो के बारे मे इसकी अहमियत मालूम पड़ी ।


अब हमे सकल्प करना चाहिए, की हमे कम से कम अपने जन्मदिन पर दो वृक्ष जरूर लगाना चाहिए ।

 

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धन्यवाद !!!😃😃

Tuesday, April 27, 2021

बकरे कि बिरयानी

बकरे कि बिरयानी एक बार एक किसान का घोडा बीमार हो गया. उसने उसके इलाज के लिये डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने घोडे का अच्छे से मुआयना किया और बोला....
आपके घोडे को काफी गंभीर बीमारी है. हम तीन दिन तक इसे दवाई देकर देखते है, अगर यह ठीक हो गया तो ठीक नही तो हमे इसे मारना होगा. क्योकि यह बीमारी दूसरे जानवरो मे भी फैल सकती है. यह सब बाते पास मे खडा एक बकरा भी सुन रहा था. अगले दिन डाक्टर आया, उसने घोडे को दवाई दी चला गया. उसके जाने के बाद बकरा घोडे के पास गया. और बोला, उठो दोस्त हिम्मत करो, नही तो यह तुम्हे मार देगे. दूसरे दिन डाक्टर फिर आया और दवाई देकर चला गया. बकरा फिर घोडे के पास आया. और बोला, दोस्त तुम्हे उठना ही होगा. हिम्मत करो नही तो तुम मारे जाओगे. मै तुम्हारी मदद करता हुं, चलो उठो. तीसरे दिन जब डाक्टर आया तो किसान से बोला, मुझे अफसोस है कि हमे इसे मारना पडेगा. क्योकि कोई भी सुधार नजर नही आ रहा. जब वो वहा से गए तो, बकरा घोडे के पास फिर आया और बोला. देखो दोस्त, तुम्हारे लिए अब करो या मरो वाली स्तिथी बन गयी है. अगर तुम आज भी नही उठे तो कल तुम मर जाओगे. इसलिये हिम्मत करो हां बहुत अच्छे थोडा सा और तुम कर सकते हो. शाबाश अब भाग कर देखो तेज और तेज इतने मे किसान वापस आया तो उसने देखा, कि उसका घोडा भाग रहा है. वो खुशी से झुम उठा. और सब घर वालो को इकट्ठा कर चिल्लाने लगा. चमत्कार हो गया. मेरा घोडा ठीक हो गया हमे जश्न मनाना चाहिए आज बकरे कि बिरयानी खायेगे शिक्षा Management या government को कभी नही पता होता कि कौन employee काम कर रहा है, जो काम कर रहा होता है, उसी का ही काम तमाम हो जाता है. ये पूर्यता सत्य है.

Saturday, February 13, 2021

स्वास्थ्य के लिए अनमोल है सरसों का तेल

स्वास्थ्य के लिए अनमोल है सरसों का तेल


सरसों का तेल एक उत्तम खाद्य पदार्थ माना जाता है, इसका प्रयोग भारत के सभी प्रतो मे लगभग किया ही जाता है। आयुर्वेद शास्त्र मे सरसों से साग को लोग चाव से खाते है। पीला सरसों मसाले से लेकर औषधि के उपयोग तक मे यहम भूमिका को निभाने वाला हुआ करता है। सरसों के तेल मे कालेस्टाल का स्तर कम होने के कारण ह्रदय रोगों मे भी लाभदायक बताया जाता है।

स्वास्थ्य के लिए अनमोल है सरसों का तेल


आज के समय मे लोगों मे सरसों तेल के प्रति विमुखता आने लगी है। इसका प्रयोग भोजन मे तो किसी तरह से कर लिया जाता है, किन्तु शारीरिक प्रयोग के लिए इसे छुआ तक नहीं जा रहा है। प्राचीन काल मे सरसों के तेल का प्रयोग करके अधिकतर स्वस्थ रहने की कामना की जाती थी। आज के समय मे सुगंधित तेलों का मकड़जाल इतना अधिक फैल गया है, की सरसों का तेल मानस पटल से विलुप्त ही होने लग गया। आयुर्वेद के गरथों के अनुसार सरसों तेल की उपयोगिता इस प्रकार है।

करते रहने से उसकी खुश्की एव खुरदरापन दूर हो जाता है, तथा हाथों की त्वचा मुलायम हो जाती है।


शीतकाल मे धूप मे बैठ कर सभी उम्र के लोगों को तेल की मालिश करनी चाहिए। शिशुओ को धूप मे लिटाकर सरसों तेल की मालिश करने से उनकी थकान दूर होती है, नीद अच्छी आती है, तथा शरीर के दर्द से राहत मिलती है।

सरसों के तेल मे कपूर मिलाकर कमर, पसलियों, छाती एव सीने पर मालिश करने से सभी स्थानों के दर्द से मुक्ति मिलती है।

बेसन मे सरसों का तेल मिलाकर उबटन की तरह त्वचा पर मलने से त्वचा गोरी हो जाती है, तथा उसमे कमल के समान ताजगी या जाती है।

सरसों के तेल मे शहद मिलाकर दातों एव मसूड़ों पर हल्के हल्के मलते रहने से मसूड़ों से सभी रोग भाग जाते है, तथा दात भी मजबूत होते है।

जुकाम होने पर या नायक के बंद होने पर दो बूद सरसों का तेल नायक के छेदो मे डालकर सास जोर से खीचने पर बंद नायक खुल जाती है, और जुकाम मे भी राहत मिलती है।

सरसों का तेल वातनाशक एव गरम होता है। इसी कारण शीत काल मे वातजन्य दर्द को दूर करने के लिए इस तेल की मालिश करनी चाहिए। जोड़ों का दर्द, मासपेशियों का दर्द, गठिया, छाती का दर्द आदि की पीड़ा भी सरसों के तेल की मालिश से दूर हो जाती है।

सरसों के तेल मे सेधा नमक मिलाकर सुबह शाम दातों पर मलने से दातों से खून आना, मसूड़ों की सूजन, दातो के दर्द मे आराम पहुचता है। साथ ही दात चमकीले व मजबूत भी बनते है।

पैरों के तलवों एव अगूठों मे सरसों का तेल लगाते रहने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। रात को हाथ पावो मे तेल लगाकर सोने से मच्छर नहीं काटते है, तथा नीद भी अच्छी आती है। बालों मे सरसों का तेल लगाते रहने से बाल मजबूत होते है, सफेद नहीं होते तथा सिर दर्द भी नहीं होता।

शीत काल मे पैरों की अगुलियों मे सूजन आ जाती है, ऐसी अवस्था मे सरसों के तेल मे थोड़ा सा पीसा हुआ सेधा नमक मिलाकर गर्म कर ले। ठंडा होने पर अगुलियों पर लेप लगाकर रात मे सो जाए। कुछ दिनों मे आराम दिखाई देगा।

स्नान से पूर्व नित्य नाभि मे दो बूद सरसों का तेल टपकाते रहने से पेट से सबंधित अनेक बीमारियों नहीं होती है, साथ ही पाचन क्रिया अच्छी बनी रहती है।

आग से पक जाने के बाद तुरंत सरसों का तेल लगा लेने से वहा फफोला नहीं होता। लिग एव योनि के भीतरी भाग मे सरसों का तेल लगाकर सभोग करने से अनेक सेक्सुअल बीमारियों से बचा जा सकता है। औषधि प्रयोग के लिए हमेशा शुद्घ तेल का ही प्रयोग हितकर होता है।

लोहे की वस्तुओ पर सरसों का तेल लगा देने से जंग का खतरा नहीं रहता है। नीबू के छिलकों मे सरसों का तेल लगाकर पीतल के बर्तन मलने से उसकी चमक बढ़ जाती है।


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Sunday, October 25, 2020

असली चोर कौन...??? हिंन्दी निबंध

असली चोर कौन...???


शहर से दो मील पर नदी किनारे हरे-भरे वृक्षो वाले एकलव्य आश्रम कि मनमोहिनी छटा सचमुच देखते ही बनती थी. दूर दूर तक एकांत और शांत वातावरण था.


आश्रम मे केवल उन्ही बच्चो को प्रवेश दिया जाता जो हर दृष्टी से योग्य होते थे. गुरु हरिप्रसाद जी आश्रम के सचालक थे, जिनका बच्चे बहुत सम्मान करते थे. वह आश्रम के परिसर मे बने निवास मे ही रहते और वहा कि व्यवस्था का पूरा ध्यान रखते थे. उनकी धर्मपत्नी मधुलता एक विदुषी पविव्रता स्त्री थी. उनका इकलौता पुत्र सौरभ बहुत सुशील और होनहार था...!!!




आश्रम मे कुल पच्चीस छात्र थे. जिनमे उनका पुत्र भी शामिल था. जयंत उन सबका मानिटर था. वह एक निर्धन परिवार से था. उसका पिता सेठ शोभाराम कि दुकान पर मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पाला करता था. सेठजी के लड्के विक्रम ने इसी आश्रम मे प्रवेश ले रखा था. लेकिन उसमे एक कमी थी कि वह जयंत को सदा तिरस्कार कि दृष्टि से देखा करता था.


एक रोज विक्रम ने गुरुजी से कहा कि उसकी जेब से किसी ने चादी का सिक्का चुरा लिया पूछने पर उसने बताया कि उसका शक जयंत पर है.


गुरुजी जयंत पर बहुत स्नेह रखते थे. यही नही, उसे वह अपना सबसे अधिक विश्वासपात्र शिष्य भी समझते थे. उसका नाम सुनकर गुरुजी को बहुत पीडा हुई जो उन्हे अंदर ही अंदर सालने लगी. जब इस बारे मे जयंत समेत सभी बालको से पूछा गया तो उन्होने कहा कि उन्हे कुछ पता नही है.


गुरुजी इसके कारण परेशान रहने लगे. आज तक उनके आश्रम मे ऐसी सुखद घटना पहले कभी नही हुई थी.


आखिर उन्हे एक तरकीब सूझी. शाम को भोजन के बाद उन्होने सभी को बुलाकर कहा देखो बच्चो विक्रम कि जेब से इस तरह सिक्के कि चोरी हो जाना इस आश्रम कि प्रतिष्ठा पर गहरी चोट है. यह तो मानना हे पडेगा कि जिसने यह हरकत कि है, वह कोई बाहर का नही है, बल्की हम मे से ही कोई है. खैर जाने अनजाने मे जिससे भी यह गलती हुई है, उससे मेरा यही कहना है कि वह तुरंत अपनी गलती सुधारे औए सुबह होने से पहले पहले उस सिक्के को आश्रम कि पत्र मंजूषा मे डाल दे. यदि ऐसा नही हुआ तो बहुत कष्ट होगा. इस रिथति मे सिक्के के कीमत मुझे अपनी ओर से अदा करनी होगी...


गुरुजी के इस कथन पर एकदम सन्नाटा छा गया. सोने से पहले बालको मे काफी देर तक इसी बात कि चर्चा होती रही. उनका ह्रदय बार बार कचोट रहा था. कि गुरुजी ने इस घटना से दुखी होकर यदि आश्रम छोड दिया,तो उन सबके लिए वह डूब मरने जैसी बात होगी.

गुरुजी भी देर रात तक सो नही पाए. दूसरी ओर चारपाई पर लेटे सौरभ की नजरे पिता पर लगी हुई थी. वह भी बहुत दुखी था. कुछ देर के बाद जब सौरभ ने देखा कि पिताजी सो रहे है, तो वह चुपके से उठा और बिना किसी आहट के धीरे से बाहर निकल गया.


गुरुजी सचमुच सोए नही थे. बल्कि आखे मीचकर लेटे हुए थे. बेटे का इस तरह बाहर जाना उन्हे कुछ अजीब लगा. पर उस समय वह कुछ बोले नही.


सुबह जब पत्र मंजूषा खोली गई, तो उसमे वह सिक्का मिल गया. गुरुजी समझ गए कि यह घिनौना कार्य उनके ही बेटे सौरभ ने किया है. सुबह दुखी होकर उन्होने सभी छात्रो से कहा कि उन्हे इस बात कि खुशी है कि विक्रम का सिक्का उसे मिल गया, किंतु ऐसी ओछी हरकत करने वाला उनसे छिपा नही रह सका. वह उसे अच्छी तरह जान गए है. फिर भी चूकि उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली है. इसलिए आश्रम से निकालने के बजाए, वह केवल उसे तीन दिन लगातार निराहार रहने कि सजा सुनाते है.

सभी बालक एक दूसरे का मुह ताकने लगे. विक्रम पीछे के ओर शांत खडा था. जयंत के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. सौरभ का सिर नीचे ओर झुका था.


गुरुजी कुछ देर रुककर फिर बोले, अब आप सभी यह जानना चाहेगे कि इस दंड का भागी कौन है.???

तो सुनिए !!! दोषी मेरा अपना बेटा सौरभ है.


यह सुनते ही विक्रम जोर से चिल्लाया नही-नही यह पाप सौरभ से नही, मुझसे हुआ है. दौडकर वह गुरुजी के चरणो मे गिर गया, और गिडगिडाते हुए बोला....मुझे माफ कर दो गुरुजी, मुझे माफ कर दो..

सौरभ का इसमे कोई दोष नही है. वह सिक्का किसी ने नही चुराया. इसे मैंने ही सौरभ को रखने के लिए दिया था. मैंने इसे कसम दिलाई थी कि इस बारे मे वह किसी को कुछ नही बताएगा. इसीलिए वह इतने दिन चुप रहा.


तो फिर जयंत पर चोरी का झूठा इल्जाम क्यो लगाया.???

इसके पीछे तेरा क्या मकसद था. गुरुजी ने पूछा...


जयंत से मन ही मन मुझे ईष्र्या होने लगी थी. क्योकि वह मेरी बराबरी कर रहा है. इसलिए मै इसे अपमानित करके किसी तरह आश्रम से निकलवा देना चाहता था. सौरभ ने इस बात के लिए मुझे कोसा भी, लेकिन मै अपने अहंकार मे अकडा रहा. आज मुझे मालूम हुआ कि किसी कि पहचान उसके पैसो से नही, गुणो से होती है.


कहता हुआ वह फूट- फूटकर रोने लगा.


गुरुजी को लगा, विक्रम ने अपनी भूल स्वीकार करके आश्रम को अपवित्र होने से बचा लिया है. उन्होने उसे प्यार से गले लगा लिया.


मै आशा, करता हुं आप को यह पोस्ट बहुत पसंद आया होगा. बेल बटन को जरुर दबाये... 

Sunday, September 27, 2020

वास्तु शास्त्र दिलाएगा धन समृध्दि

वास्तु शास्त्र दिलाएगा धन समृध्दि


यू तो किसी को किस्मत से ज्यादा नही मिलता लेकिन कई बार अनेक बाधाओ के कारण किस्मत मे लिखी धन समृध्दि भी प्राप्त नही होती.

वास्तु को मानने वाले अगर इसके मुताबिक काम करे तो उन्हे वो मिल सकता है जो अब तक नही मिला है...


                                                       वास्तु शास्त्र दिलाएगा धन समृध्दि


पूर्व दिशा- यहा घर कि संपति और तिजोरी रखना शुभ होता है और उसमे बढोतरी होती रहती है.


पश्चिम दिशा- यहा धन सम्पति और आभूषण रखे जाए तो साधारण ही शुभता का लाभ मिलता है. परंतु घर का मुखिया अपने स्त्री पुरुष मित्रो का सहयोग होने के बाद भी बडी कठिनाई के साथ घन कमा पाता है.


उत्तर दिशा- घर कि इस दिशा मे कैश व आभूषण जिस अलमारी मे रखते है वह अलमारी भवन कि उत्तर दिशा के कमरे मे दक्षिण कि दिवार से लगाकर रखना चाहिए. इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा कि ओर खुलेगी, उसमे रखे गए पैसे और आभूषण मे हमेशा वृध्दि होती रहेगी.


दक्षिण दिशा- इस दिशा मे धन, सोना,चांदी और आभूषण रखने से नुकसान तो नही होता परंतु बढोतरी भी विशेष नही होती है.


ईशान कोण- यहा पैसा, धन और आभूषण रखे जाए तो यह दर्शाता है कि घर का मुखिया बुध्दिमान है और यदि उत्तर ईशान मे रखे हो, तो घर के एक क्न्या संतान और यदि पूर्व ईशान मे रखे हो तो एक पुत्र संतान बहुत बुध्दिमान और प्रसिध्द होता है.


आग्नेय कोण- यहा धन रखने से धन घटता है, क्योकि घर के मुखिया कि आमदनी घर के खर्चे से कम होने के कारण कर्ज कि स्थिति बनी रहती है.


नैऋत्य कोण- यहा धन, महगा सामान और आभूषण रखे जाए तो वह टिकते जरुर है, किंतु एक बात अवश्य रहती है कि यह धन और सामान गलत ढंग से कमाया हुआ होता है.


वायव्य कोण- यहा धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है. ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गडबडाया रहता है और कर्जदारो से सताया जाता है.


सीढियो के नीचे तिजोरी रखना शुभ नही होता है. सीढियो या टायलेट के सामने भी तिजोरी नही रखना चाहिए. तिजोरी वाले कमरे मे काबाड या मकडी के जाले होने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है.

घर कि तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मी जी कि तस्वीर जिसमे दो हाथी सूंड उठाए नजर आते है, लगाना बडा शुभ होता है. तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या आफ व्हाइट रखना चाहिए...



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