Friday, November 22, 2019

गंगा प्रदूषण पर निबंध


गंगा प्रदूषण पर निबंध/ हिन्दी निबंध

गंगा प्रदूषण पर निबंध
गंगा प्रदूषण पर निबंध


       
गंगा भारतीय जन मानस बल्कि स्वयं समूची भारतीयता की आस्था का जीवंत प्रतीक है, मात्र एक नदी नही. हिमालय की गोद में पहाड़ी घाटियों से नीचे उतर कर कल्लोल करते हुए मैदानों की राह पर प्रवाहित होने वाली गंगा पवित्र तो है ही, वह मोक्षदायिनी के रूप में भारतीय भावनाओं में समाई है. भारतीय सभ्यता संस्कृति का विकास गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों विशेषकर गंगा तट के आसपास ही बसा हुआ है. गंगाजल वर्षों तक बोतलो, डिब्बो आदि मे बंद रहने पर भी कभी खराब नहीं होती और ना ही कोई कीड़े लगते हैं. वहीं भारतीयता की मातृवत पूज्या गंगा प्रदूषित होती जा रही है. अभी एक वैज्ञानिक अनुभव सिद्ध है.


     पतित पावनी गंगा के जल प्रदूषित होने के बुनियादी कारण क्या है, उन पर कई बार विचार किया जा चुका है, एक कारण तो यह है कि भारत के सभी प्रमुख नगर गंगा और उसके आसपास बसे हुए हैं. उनमें आबादी का दबाव बहुत बढ़ गया है, वहां से माल और गंदे पानी की निकासी की कोई व्यवस्था ना होने के कारण बनाए गए छोटे बड़े गंदे नालों के माध्यम से बहकर गंगा नदी मे मिलता है. परिणामस्वरूप कभी खराब ना होने वाला गंगाजल भी बाकी वातावरण  के समान आज बुरी तरह से प्रभावित होकर रह गया है.


    एक दूसरा प्रमुख कारण गंगा प्रदूषण का यह है कि औद्योगिकरण की बढती प्रवृति ने भी इसे बहुत प्रश्रय दिया है. हावड़ा, कोलकाता, बनारस, कानपुर आदि जाने कितने औद्योगिक नगर गंगा तट पर बसे है. यहां लगे छोटे बडे कारखानो से बहने वाला रासायनिक दृष्टि से प्रदूषित पानी, कचरा आदि भी गंदे नालो तथा मार्गो से आकार गंगा मे ही विसर्जित होता है.


       
इस प्रकार के तत्वों ने जैसे बाकी वातावरण को प्रदूषित कर रखा है, वैसे गंगाजल को भी बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है. वैज्ञानिकों, का यह भी मानना है, कि सदियों के आध्यात्यिक भावनाओं से अनुप्रभावित होकर गंगा की धारा में मृतकों की अस्थियां एव अवशिष्ठ राख तो बहाई ही जा रही है, अनेक लावारिस और बच्चों की लाशें भी बहा दी जाती है. बाढ आदि के समय मरे पशु भी धारा में आ मिलते हैं. इन सब ने भी जल प्रदूषित की स्थितिया पैदा कर दी है. गंगा के निकास स्थल और आसपास से वनों का नियंत्रण कटाव, वनस्पतियों औषधियों तत्वों का विनाश भी प्रदूषित का एक बहुत बड़ा कारण है. इसमें संदेह नहीं कि ऊपर जितने भी कारण बताए गए हैं, गंगा जल को प्रदूषित करने में उन सभी का हाथ आवश्यक है.


     विगत वर्षों में गंगाजल का प्रदूषण समाप्त करने के लिए एक योजना बनाई गई थी. कुछ दिनो उस पर कार्य होता भी रहा. फिर शायद धन अभाव के कारण उसे रामभरोसे बीच में छोड़ दिया गया. योजना के अंतर्गत दो कार्य मुख्य रूप से किए गए या करने का प्रावधान किया गया. एक तो यह कि जो गंदे नाले गंगा मे आकर गिरते है, या तो उनका रुख मोड़ दिया जाए, या फिर उनमें जल शोधन करने वाले संयंत्र लगाकर जल को साफ करने दिया जाए. शोधन से प्राप्त मलवा बड़ी उपयोगी का काम दे सकता है, या एक स्वयंसिद्ध बात है. दूसरा यह कि कल कारखानों से निकलने वाला दूषित प्रदूषित जल भी गंगा तक ना पहुंचने दिया जाए. कारखानों में ऐसे संयंत्र लगाए जाएं तो उस जल का शोधन कर सके उस पानी को कचरे को कहीं और भूमि के भीतर दफन कर दिया जाए. शायद ऐसा कुछ करने का एक सीमा तक प्रयास भी किया गया. पर काम आगे नहीं बढ़ सका, यह भी तथ्य है, जबकि गंगा के साथ जुड़ी भारतीयता का ध्यान रख उसे पूर्ण करना बहुत आवश्यक है.


        
बाकी तनिक आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टि अपनाकर अपने ही हित में गंगाजल में लाशें बहाना बंद किया जा सकता है. धारा के निकास स्थल के आसपास से वन वृक्षो, वनस्पतियो आदि का कटाव कठोरता से प्रतिबंधित कर कटे स्थान पर उनका पूर्ण विकास कर पाना आज कोई कठिन बात नहीं रह गई है.अन्य उन कारक तत्वो को भी थोड़ा प्रयास कर के निराकरण किया जा सकता है. जो गंगा जल को प्रदूषित कर रहे हैं, ऐसा सब करना वास्तव में भारतीयता और उसकी संस्कृति में आ मिले. अपतत्वों से उसकी रक्षा करना है. वास्तव मे गंगा जल की शुद्धता का अर्थ भारतीयता की सामग्र शुद्धता है.


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Thursday, November 21, 2019

क्रिसमस



क्रिसमस
क्रिसमस


   
भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं. इनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बौद्ध आदि  प्रमुख हैं. धर्म-निरपेक्ष भारत में यही कारण है, कि सभी तरह के पर्व मनाया जाते हैं. क्रिसमस अर्थात बड़े दिन का त्यौहार ईसाई धर्म के लोगों का महान पर्व है. यह पर्व हिंदुओं के रामनवमी तथा जन्माष्टमी पर्वो से मिलता-जुलता है. क्रिसमस का त्योहार लगभग विश्व के सभी देशो मे मनाया जाता है.यह पर्व प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को मनाया जाता है. इस दिन ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह का जन्म हुआ था. उसी खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है. भूगोल की दृष्टि से यह दिन वर्ष भर का सबसे बड़ा दिन होता है, इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं.



    
इस दिन की इसाई लोगों द्वारा बड़ी उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा की जाती है. इस संसार में महा प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन को बड़ी पवित्रता और आस्था पूर्वक मनाया जाता है. इस दिन ही श्रद्धालु और विश्ववस्त भक्तजन ईसा मसीह के पूर्व जन्म की शुभकामना किया करते हैं. उनकी याद में विभिन्न स्थानों पर प्रार्थनाए और भावनाएं प्रस्तुत की जाती है.



     
क्रिसमस का त्यौहार मुख्य रूप से ईसाई धर्म के अनुयायियों और उसके समर्थकों द्वारा मनाया जाता है. मसीह का जन्म 25 दिसंबर की रात 12:00 बजे बेथलेहम शहर में स्थित एक गौशाला मे हुआ था. उनकी मां का नाम मरियम था. जो कि दाऊद वंश की थी. उनकी मां ने उन्हें एक साधारण कपड़े में लपेटकर धरती पर लिटा दिया था. जन्म के समय ईसा मसीह का नाम एमानुएल रखा गया. इस शब्द से अभिप्राय मुक्ति प्रदान करने वाले से है. इनके नाम के अनुरूप ही कहा जाता है, कि ईश्वर ने उन्हें इस धरती पर मुक्ति प्रदान करने वालों के रूप में अपना दूत बनाकर भेजा है. जिसे ईसा मसीह ने अपने कार्यों द्वारा सिद्ध कर दिखाया.


पूर्व से 1 दिन पूर्व अर्थात 24 दिसंबर से लोग अपने घरों के साथ साथ धार्मिक स्थलो को सजाने लग जाते हैं. एक दिन ठीक अर्ध रात्रि में ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इस खुशी में लोग अपने घरों को रंग बिरंगी रोशनी से सजाते है. ठीक रात्री बारह बजे गिरजाघरो मे प्रार्थना शुरू हो जाती है. और शुरू हो जाता है  बड़े दिन का त्यौहार. रात्रि 1:00 से 25 दिसंबर का बड़ा दिन शुरू हो जाता है. इस दिन भी गिरजाघरों में प्रार्थना की जाती है. प्रार्थना सभा समाप्त होने पर वहां उपस्थित लोग एक दूसरे को बधाई देकर अपने अपने घर लौट जाते हैं.


   यह त्यौहार विश्व का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. इसाई धर्म की विशालता के कारण इस संप्रदाय के लोग लगभग विश्व  के हर हिस्से में रहते हैं. इसलिए त्यौहार संपूर्ण विश्व में बड़ी ही लग्न और तत्परता के साथ प्रति वर्ष मनाया जाता है.

अहिंसा, सत्य और मानवता के संस्थापक और प्रतीक कहलाते हैं ईसा मसीह. इनके सम्मान और साधारण जीवन के आचरण को देखकर कहा जा सकता है, कि यह सादा जीवन और उच्च विचार के प्रतीकात्मक महा माना थे. ईसा मसीह ने भेड़, बकरियों को चराते हुए उस समय प्रचलित अंध विश्वासों और रूढ़ियों के प्रति विरोध जताना शुरू किया, जिसका लोगों ने कड़ा विरोध किया. हाल-कि उनके समर्थक भी थे जो, कि अंधविश्वासों और रूढ़ियों को प्रगति में बाधक  मानते थे.



       
उनके विरोधी ज्यादा होने के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिलने में समय नहीं लगा. ईसा मसीह के विचारों को सुन यहूदी लोग घबरा उठे. यहूदी अज्ञानी होने के साथ साथ अत्याचारी भी थे. वे ईसा मसीह को मुर्ख कह जलते भी थे. लेकिन अंदर से वे ईसा मसीह से भयभीत थे. उन्होने ईसा मसीह का विरोध करना शुरू कर दिया. यहूदियो ने ईसा मसीह को जान से मार डालने तक की योजना बनानी शुरू कर दी थी. ईसा मसीह को जब पता चला कि यहूदी उन्हे मारना चाहते है तो वे यहूदियो से कहा करते थे, कि तुम मुझे आज मारोगे मै कल फिर जी उठूगा.



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Wednesday, November 20, 2019

मौसम के अनुसार वेशभूषा का चयन


मौसम के अनुसार वेशभूषा का चयन

मौसम के अनुसार वेशभूषा का चयन
मौसम के अनुसार वेशभूषा का चयन


मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों पर मौसम का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है. वातावरण के तापक्रम, आद्रता, वर्षा तथा सूर्य के प्रकाश आदि कारणों का विशेष ध्यान रखा जाता है. व्यक्ति के आहार तथा रहन-सहन में भी परिवर्तजहां तकहोताहै.जहा तक  व्यक्ति की वेशभूषा का प्रश्न है. इस पर तो मौसम का प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है. मौसम संबंधी कारक अवहेलना करके वेशभूषा का चयन करना, न केवल असामान्य प्रतीत होता है. बल्कि ऐसा करना स्वय मौसम के प्रतिकूल वेशभूषा धारण करने वाले व्यक्ति के लिए अत्याधिक असुविधाजनक तथा अनेक  बार तो परेशान करने वाला भी होता है. अत: व्यक्तिगत का निर्धारण मौसम के अनुकूल ही होना चाहिए.

मौसम को ध्यान में रखकर, वेशभूषा का चयन करते समय वेशभूषा के कपडे, उनके रंग तथा स्वरूप को भी ध्यान मे रखना चाहिए.


गर्मी-  में वेशभूषा का चयन करते समय कपड़ों की ताप की सवाहकता को अनिवार्य रूप को ध्यान में रखना चाहिए. इस मौसम में उन्हीं वस्त्रो का प्रयोग करना चाहिए, जो आपके उत्तम शरीर की ताप कपड़ों के माध्यम से बाहर निकलता है. तथा शरीर को अधिक गर्मी अनुभव नहीं होती. यदि  गर्मी के मौसम में ऐसे वस्त्र धारण कर लिए जाएं तो ताप के कुचालक हो, तो उस स्तिथि में शरीर का ताप कपड़ों के माध्यम से बाहर नहीं निकल पाता तथा व्यक्ति को अत्याधिक गर्मी व बेचैनी का अनुभव होने लगता है. इस दृष्टिकोण से मौसम में सूती, लिनन तथा रेयन के वस्त्र धारण करना ही अच्छा माना जाता है. गर्म मौसम में वेशभूषा के चयन के समय कपड़ों की अवशोषण क्षमता को ध्यान में रखना भी बहुत ही आवश्यक होता है. इस मौसम में उसी वस्त्र को धारण करना चाहिए जिसमें नमी को सूखने की पर्याप्त क्षमता हो. गर्म मौसम में शरीर से अधिक पसीना निकलता है, तथा यदि पहने हुए वस्त्रों द्वारा पसीने को नहीं सोखा जाता तो शरीर में चिपचिपापन होने लगता है. गर्मी के मौसम में धारण की जाने वाली वेशभूषा के रंग का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए. गर्मी के मौसम में शीतल रंगो वाले वस्त्र ही धारण करने चाहिए. हल्का नीला, हरा, फिरोजी तथा बैगनी रंग शीतल माने जाते हैं. रंगों के वस्त्र गर्मी में धारण करने से अधिक गर्मी नहीं लगती, तथा देखने वालों को भी ये रंग भाते हैं. गर्मी के मौसम में वेशभूषा के स्वरूप का भी ध्यान रखना चाहिए. इस मौसम में आंधी बाह वाले ब्लाउज का कमीज ही धारण करने चाहिए. बच्चों को लेकर तथा छोटी छोटी शर्ट पहननी चाहिए. या टीशर्ट पहनने चाहिए. इस मौसम में मौजे तथा बूट नही पहनना चाहिए.


ठंडे मौसम में वेशभूषा का निवारण करते समय सम्मान मुख्य रूप से या ध्यान रखना चाहिए कि वेशभूषा धारण करके शरीर को कम से कम ठंड लगे. अत: ठंडे मौसम में ताप के कुचालक वस्त्रों को ही वेशभूषा के लिए चुनना चाहिए. ताप के  कुचालक वस्त्र  न तो शरीर की गर्मी को बाहर निकाल निकलने देते हैं और ना ही बाहर के  ठंडक को शरीर तक पहुंचाने देते हैं. इस स्थिति में शरीर का ठंड से बचाना होता है.  ऊन तथा कुछ कृत्रिम तत्वों से निर्मित वस्त्र ताप के कुचालक होते है. तथा  शरीर को ठंड से बचाते हैं. ठंडे मौसम में इसी प्रकार के वस्त्र धारण किया जाना चाहिए. जहां तक वेशभूषा के रंग का प्रश्न है, ठंडे मौसम में गर्म रंगों के वस्त्र ही धारण किए जाने चाहिए. लाल, पीला तथा नारंगी आदि रंग गर्म होते हैं. ठंडे मौसम में इन रंगों के वस्त्र धारण किए जाना चाहिए. इस मौसम में काले रंग के अथवा काला मिक्षित्र रंग के वस्त्र धारण किए जा सकते हैं. ठंडे मौसम में भड़कीले रंगों के वस्त्र ही धारण किए जा सकते हैं. ठंडे मौसम में वेशभूषा के स्वरूप का भी ध्यान रखना चाहिए. इस मौसम में वेशभूषा इस प्रकार की होनी चाहिए, जिससे शरीर के अधिक से अधिक भाग को ढका जा सके. इस मौसम में पूरी बांह वाली कमीज धारण किए जा सकते हैं. महिलाओं तथा बच्चों को पुरी बाह के वस्त्र  पहनने चाहिए. इस मौसम में सिर ढकने के लिए भी स्काफ, टोपी या कोई अन्य वस्त्र धारण किए जाना चाहिए.

वर्षा के मौसम में वेशभूषा का निर्धारण करते समय मुख्य रूप से या ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति के वेशभूषा ऐसी हो  जो भीग  जाने पर शीघ्र ही सूख जाएं. समान रूप से के तत्वों से निर्मित वस्तु गीली होने पर शीघ्र ही सूख जाते हैं. अतः बरसात के मौसम में इस प्रकार के वस्त्र धारण किए जा सकते हैं.  हमारे देश में समान रूप से बरसात के मौसम में गर्मी भी होती है. अतः इस मौसम में पसीना चिपचिपहाट की समस्या का भी सामान्य सामना करना पड़ता है. इस स्थिथि में बरसात के मौसम में यदि महीन सूती वस्त्र धारण किए जाए तो वे अधिक आरामदायक होते हैं. बरसात के मौसम में वस्त्रों के रंगों का चयन सूझ बुझ  द्वारा किया जाना चाहिए. बादल युक्त मौसम मे गहरे रंगोके वस्त्र  धारण किए जा सकते हैं. धूप के समय हल्के रंग के वस्त्र धारण किए जाना चाहिए. बरसात के मौसम में समान रूप से मौजे तथा बुट को  नहीं पहनने चाहिए.

स्कूल जाते समय वेशभूषा

बालक बालिकाओं को प्रति दिन शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल जाना होता है. स्कूल जाते समय बालक बालिका की वेशभूषा का निवारण स्कूल के नियम जारी होता है. तथा प्रत्येक स्कूल की वेशभूषा निर्धारित होती है. स्कूल जाने वाले बच्चों को सदैव निर्धारित वेशभूषा धारण करनी चाहिए. निर्धारित वेशभूषा धारण करने से स्कूल के सभी छात्रों में एकरूपता बनी रहती है. ऐसे में रूपांतर सामने नहीं आता, तथा सभी बच्चों का भी का समान रूप से पाता होता है. यदि बच्चों की वेशभूषा यूनिफॉर्म आधारित ना हो तो उसके रहती है कि उस स्थिथि मे  बच्चों इस बात कि आशका रहती है कि गरीब बच्चो में हीन भावना विकसित हो जाती है.  स्कूल जाने वाले बच्चों की वेशभूषा अच्छी फिटिंग वाले होने चाहिए पक्का होना चाहिए. वास्तव में बच्चों के पहनने वाले कपड़े जल्दी मेले हो जाते हैं तथा इने बार बार धोने कि आवश्यकता पडती है.

कार्यस्थल में वेशभूषा

प्रत्येक व्यक्ति विशेष रूप से पुरुषों को प्रतिदिन अपने कार्यस्थल पर पर्याप्त समय गुजारना होता है. विभिन्न अवसर वाले व्यक्तियों का कार्यस्थल अलग अलग होता है. फैक्ट्री और या वर्कशॉप में कार्य करने वाले व्यक्तियों को कार्य की प्रकृति के अनुसार अपनी वेशभूषा निर्धारित करनी पड़ती है. प्राय इस अवसर पर चुस्त वस्त्र पहनना चाहिए. चिकित्सा, वकील, प्रोफेसर आदि को भी अपने व्यवसाय के वेशभूषा निर्धारित करनी पड़ती है. दुकान या किसी व्यापारी संस्थान में कार्य करने वाले व्यक्तियों को भी अपने कार्य के अनुरूप वेशभूषा निर्धारित करनी चाहिए. आज के युग में अनेक महिलाएं विभिन्न व्यवसायो से संलग्न है. इन महिलाओं को भी अपने व्यवसाय के रूप से वस्त्र पहनने चाहिए. महिलाओं को अपने व्यवसाय मे सिम्पल वस्त्र धारण करनी चाहिए, तथा दिखावटी वेशभूषा धारण करने के दौरान महिलाओं को बहुत ही साधारण तहलका सिंगार करना चाहिए. समान रूप से धारण नहीं करना चाहिए, यदि किसी परम्परा या मान्यता को द्रिटीगत रख कर  कुछ गहने धारण करने आवश्यक हो तो साधारण प्रकार के गहने धारण किए जाने चाहिए, खनखन आने वाले गहने बिल्कुल भी धारण नहीं करने चाहिए. कार्यस्थल पर महिलाओं को सुगंध वाले परफ्यूम भी हल्का युज करना चाहिए.

रात्रि के समय वेशभूषा

समान रूप से विभिन्न अवसरों पर मित्र जनों को रात्रि भोजन या डिनर पार्टी के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस समय विशेष प्रकार की आकर्षक वेशभूषा धारण की जा सकती है. ऐसे अवसरों पर वेशभूषा का समुचित प्रदर्शन किया जा सकता है. अपनी रुचि हो पसंद के अनुसार चमकीले भर्कीले वस्त्र तथा जड़ी गोटे वाले अर्थात साटन तथा वेलवेट के वस्त्र भी धारण किए जा सकते हैं. वस्त्रों के अतिरिक्त सिंगार के विषय में भी किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होता. अपनी रुचि तथा शरीर की आकृति आज के अनुसार सिंगार किया जा सकता है. बालों में फूलों का गजरा तथा अपनी पसंद का परफ्यूम भी लगाया जा सकता है. ऐसे समय मौसम के अनुकूल वस्त्रों को ही धारण करना चाहिए. वस्त्रों के साथ मेल खाते हुए सैंडल चप्पल पहनने चाहिए. अपने शरीर के आकार से मेल खाता हुआ पर्स भी लिया जा सकता है. समान रूप से अधिक बड़े आकार का पर्स पार्टी में लेकर नहीं जाना चाहिए. रात्रि भोज के अवसर पर अपने रिश्ते के अनुरूप आभूषण भी धारण किए जा सकते हैं. परंतु धारण किए जाने वाला आभूषणो को अपने वेशभूषा से मेल खाता हुआ होना चाहिए. संक्षेप में कहा जा सकता है कि रात्रि भोज के अवसर पर आकर्षक वेशभूषा धारण की जा सकती है.

तीज त्यौहार पर अवसर पर वेशभूषा

तीज त्यौहार भी हर्ष उल्लास के अवसर होते हैं. इन अवसरों पर हर्ष उत्साह तथा उमंग का वातावरण होता है. अत: रंग बिरंगे तथा भडकीले वस्त्र धारण किये जा सकते है. किशोरियो द्वारा जींस स्कर्ट आदि पहने जा सकते है. तीज त्योहार पर केश विन्यास तथा बनाव श्रृगार की भी पर्याप्त छुट होती है.

यात्रा के अवसर पर वेशभूषा

यात्रा के अवसर पर भी सामान्य से कुछ विभिन्न वेशभूषा धारण की जानी चाहिए. इस अवसर पर धारण किए जाने वाली वेशभूषा का आवश्यक गुण है. उसका सुविधाजनक का होना. यात्रा के समय इसी वेशभूषा धारण की जानी चाहिए जिसे पहनकर रेल या बस में उठना बैठना लेटना तथा सोना सरल और समान रूप से हो. इसे वस्त्र धारण करने चाहिए जो शीघ्न भी क्रश ना हो पाए. समान रूप से कृत्रिम तत्वों से निर्मित वस्त्र ही उत्तम रहते हैं. यात्रा के अवसर पर किसी प्रकार के बनाव सिगार नही होना चाहिए.  यात्रा के अवसर पर किसी भी प्रकार की आभुषणो को नही  धारण नहीं करना चाहिए.

 
खेल के अवसर पर वेशभूषा

 
खेल का अवसर भी उल्लास का होता है. इस अवसर पर व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के शारीरिक क्रियाओं भी करनी पड़ती. अत: वेशभूषा का चयन करते समय सर्वाधिक ध्यान सुविधाजनक वेशभूषा पर ही रहना चाहिए. जो वेशभूषा खेल के अनुकूल सुविधा प्रदान करने वाली हो, वही धारण की जानी चाहिए. इसके अतिरिक्त खेल के समय धारण की जाने वाली वेशभूषा में आवश्यकता तथा सरलता से धोए जा सकने का गुण भी अनिवार्य रूप से विद्यमान होना चाहिए. समान रूप से खिलाड़ियों की वेशभूषा यूनिफॉर्म पूर्ण आधारित होती है तथा उन्हें वहीं वेशभूषा धारण करनी चाहिए.

शौक के अवसर पर वेशभूषा

शौक का अवसर ऐसा होता है जिसमें ना तो किसी प्रकार की उमंग होती है ना ही किसी प्रकार का उल्लास. चारों ओर सावेदता सहानुभूति का अवतरण होता है. ऐसे अवसर पर अत्याधिक तडक भडक रहित वेशभूषा धारण करना चाहिए.नामान्य रूप से सहेद वस्त्र ही धारण करने चाहिए.  शोक  के अवसर पर धारण की जाने वाली वस्त्र में किसी प्रकार का आकर्षक एवं दिखावा नहीं होना चाहिए. इस अवसर पर किसी प्रकार का सिंगार भी नहीं किया जाना चाहिए तथा किसी प्रकार के आभूषण धारण नहीं करनी चाहिए.

Monday, November 18, 2019

प्राथमिक चिकित्सा



प्राथमिक चिकित्सा
प्राथमिक चिकित्सा


   मानव शरीर मे कब और कहां खराबी आ जाये, कौन सी दुर्घटना शरीर के अंगो को क्षति पहुचा दे यह मालूम नही रहता. बच्चो के साथ अधिकतर छोटी- छोटी घटनाए होती रहती है. कभी ब्लेड, चाकू या छुरी से हाथ काटते है, तो कभी सीढियो या उचे स्थानो से गिरकर अपने हाथ पैर तोड लेते है. कभी पानी मे डूबकर मूच्छीत हो जाते है, या शरीर के अंगो को घायल कर लेते है तो कभी गरम चीजो से हाथ पैर जला लेते है.


   अधिकांशत: यह सम्भव नही होता कि दुर्घटनास्थल पर ही तुरंत डाक्टर उपलब्ध हो जाये ऐसी दशा मे प्राथमिकचिकित्सा नितांत आवश्यक है. अत: प्राथमिक चिकित्सा से अभिप्राय परिवार मे दुर्घटना के समय गृहिणी द्वारा प्रदान कि जाने वाली चिकित्सीय सुविधा है, जिससे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को विषम संकटपुर्ण रिथ्ति से बचाया जा सके.



क्या करे:-


परिस्थिति पर नियंत्रण करना चाहिए. कुशलता एव दृढतापूर्वक कार्य करना चाहिए. यदि अन्य लोग सहायता करना चाहे तो उन्हे उपयोगी कार्य जैसे- डाक्टर को बुलाने एव परिवार वालो को सूचित करने के लिए भेज देना आदि.


घायल व्यक्ति को लेटे रहना चाहिए, उसे उठाने का प्रयत्न मत कीजिये. उसकी चोट का परिक्षण करते समय उसका सिर छाती की सीध मे ही रहना चाहिए.

घायल को हिलाने मे अपेक्षित सावधानी बरतनी चाहिए. घायल को अनावश्यक रूप से हिलाना घायल व्यक्ति के लिए घातक हो सकता है.

डाक्टर या एम्बुलेंस को बुलाना चाहिए.

केवल उतना ही उपचार करना चाहिए जो घायल की दशा को यथास्थिति बनाये रखने मे सहायक हो तथा उसकी हालत अधिक बिगडने न पाये व उसे आराम मिले.

प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुए:-


प्राथमिक चिकित्सा के लिए सभी आवश्यक वस्तुए प्राथमिक चिकित्सक को एक डिब्बे मे रखनी चाहिए, जिससे आपात स्थिति मे उनका तुरंत उपयोग किया जा सके.


1] स्वच्छ डाक्टरी रूई- यह दवा लगाने एव घाव को साफ करने के काम आती है.
2] पटिट्या- बाक्स मे पट्टिया भी होनी चाहिए, ताकि घाव मोच आदि पर बांधी जा सके.
3] कैची- डिब्बे मे कैची भी होनी चाहिए.
4] टेप- जिन स्थानो पर पट्टी नही बाधी जा सकती वहा रूई आदि पर टेप लगाकर घाव को ढक दिया जाता है.
5] पिन
6] चम्मच, गिलास
7] आई ग्लास- यह आख धोने के काम आता है, यदि आखो मे कोई तिनका आदि चला जाये तो इसमे पानी भरकर इससे आख धोई जाती है.
8] खपच्चिया
9] गर्म पानी की बोतल, बर्फ की थैली
10] पुराना साफ कपडा
11] थर्मामीटर
12] टूनीकेट
13] चिमटी
14] सुई धागा, आदि

प्राथमिक चिकित्सा
प्राथमिक चिकित्सा

कुछ दवाइया भी होनी चाहिए जैसे कि:-


1] अमृतधारा- हैजा, उल्टी व दस्त के लिए
2] डिटाल- घाव धोने के लिए
3] पोटैशियम परमैगनेट- घाव धोनेके काम आता है
4] विक्स- सिरदर्द, सर्दी, जुकाम आदि के लिए
5] बरनांल- जले, कटे पर लगाने के लिए
6] टिचर आयोडिन- घाव के लिए
7] फ्यूरासिन- चोट पर लगाने के लिए
8] एनासिन, कोडोपायरिन- दर्द के लिए
9] अजवायन- पेट दर्द के लिए
10] पचनाल- अफारो के लिए
11] कोरापिन- दिल घबराने के लिए
12] पुदीन हरा- अपच होने पर
13] फिटकरी- खुन रोकने के लिए
14] आयोडेक्स- गुम चोट के लिए
15] ग्लूकोज- शीघ्र ताकत के लिए
16] बोरिक पाउडर- घाव धोने के लिए
17] एण्टोवाय फार्म- दस्त होने पर
18] डिपेण्डाल- पेचिश होने पर
19] बेरालगन- पेट दर्द होने पर
20] क्रोसिन- ज्वर कम होने पर
21] एविल- किसी भी एलर्जी पर
22] ग्लिसरीन- छालो पर लगाने के लिए
23] जैतून का तेल- जले पर लगाने के लिए
24] लौक्यूला- आखो मे जलन के लिए
25] स्प्रिट- घाव धोने के लिए
26] नमक- वमन करने के लिए
27] हल्दी- खून रोकने के लिए
28] शहद- चोट की सूजन कम करने के लिए
29] लौग का तेल- दात दर्द के लिए


सरसो का तेल, कुनैन, खाने का सोडा, चीनी आदि आवश्यकता पडने पर यह सूची घटाई बडाई जा सकती है. समय पर प्राथमिक चिकित्सा द्वारा व्यक्ति के बहुमुल्य जीवन बचाया जा सकता है.