Monday, July 12, 2021

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या


   देश मे बढ़ रही बेरोजगारी की समस्या को हल नहीं किया गया तो देश मे सामाजिक असंतोष फैल सकता है । यह कहना था योजना आयोग के उपाध्यक्ष कृष्ण चंद पंत का । उनके द्वारा कही गई यह बात वर्तमान को देखते हुए सत्य बैठती है । किसी भी देश के लिए बेरोजगारी एक भयंकर समस्या है । रोजगार व्यक्ति जहा समाज मे उत्पादन वृद्धि मे योगदान करता है, वही बेरोजगार व्यक्ति अर्थ व्यवस्था पर बोझ बन जाता है । बेरोजगारी का सबसे बुरा पक्ष सामाजिक है । बेरोजगारी मनुष्य के आत्मविश्वास को खत्म कर उसमे हीनता को जन्म देती है । इस प्रकार मनुष्य निराशावादी हो जाता है, और उसके मन मे समाज के प्रति आक्रोश उत्पन्न होने लगता है । बाद मे यही आक्रोश उसके सामाजिक असंतोष का कारण बनता है ।

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या 



   बेरोजगारी के कारण जब किसी व्यक्ति के समक्ष भूखों मरने की नौबत आ जाती है, तो वह व्यक्ति कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है । देश मे लूटपाट, चोरी, डकैती, हत्या, फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराधों मे बढ़ोत्तरी बेरोजगारी के कारण ही हो रही है । यही नहीं बेरोजगारी के कारण ही लोग भिक्षावृत्ति एव वैश्यावृत्ति जैसी अमानवीय वृत्ती को अपनाने के लिए मजबूर हो रहे है । हमारे देश मे बेरोजगारी मे विस्फोटक ढंग से  वृदधि हुई है । वर्ष 1951 मे देशभर मे बेरोजगारों की संख्या 33 लाख थी । वर्ष 1961 मे 90 लाख हो गई । इस तरह देश मे बेरोजगारी की संख्या मे लगातार वृद्धि हो रही है, और अब इनकी संख्या 25 करोड़ से भी अधिक है। बेरोजगारी बढ़ने का सबसे बडा कारण उत्पादन का केन्द्रीकरण ढाचा है । यही केन्द्रीकरण ढ़ाचा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फलते फूलने का सबसे मजबूत आधार है ???


   90 के दशक के शुरुआती वर्षों मे हमारे देश मे उदारीकरण का दौर शुरू हुआ । इसके बाद से विश्व बैक और मुद्रा कोष के इशारे पर आर्थिक नीतिया निर्धारित की जाने लगी । इन नई आर्थिक नीतियो की जड़ मे ही बेरोजगारी समाई हुई है । नई आर्थिक नीतियों के मूल मे भारी पूंजी निवेश, व्यापार का वैस्वीकारण, निर्यात पर जोर, अधिक से अधिक मुनाफा कमाना और व्यवस्था का केन्द्रीकरण है । इन नीतियों के कारण उत्पादन मे तो वृध्दि हुई लेकिन रोजगार के अवसर घटते गए । आज किसी सरकारी उपक्रम मे खर्चों मे कमी, करने की जब बात चलती है तो, छटनी के रूप मे सबसे पहले गज मजदूरों पर ही गिरती  है । दूसरी बात यह है, की पूंजी निवेश की वजह से सरकार एव कंपनियों पर ॠण बढ़ता रहता है । सरकारे घाटे की अर्थव्यवस्था चलती है, जो रोजगार मे बाधक होती है ।


   तीसरी दुनिया के अधिकांश देश आज कर्ज मे डूबे हुए है । इनसे मुक्ति पाने के लिए विश्व बैक और मुद्रा कोष ने एक ढचागत समायोजन कार्यक्रम 1981-82 मे लागू किया । हमारे देश मे यह कार्यक्रम 1991 मे लागू हुआ । इस कार्यक्रम के तहत बजट मे कटौती तथा सार्वजनिक विकास मे कटौती मुख्य है


1991 के बाद से बेरोजगारी की समस्या बढ़ती चली गई । पिछले कुछ वर्षों से रोजगार के अवसर अचानक कम हुए है सरकारी प्रतिष्ठानों मे न केवल भरतिया बंद है बल्कि छटनी कार्यक्रम चल रहा है । निजी क्षेत्र मे मशीनों के नवीनीकरण और आटोमेशन के चलते नए रोजगार बहुत कम पैदा हो रहे है । इन सबके आलावा रही सही कसर सरकार ने श्रम कानूनों मे संशोधन करके पूरी कर दी ।


   वर्तमान अर्थव्यवस्था की मार सबसे अधिक विकासशील देशों पर पड रही है । विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनिया विश्व बैक और मुद्रा का पूरा लाभ उठा रही है । इन कंपनियों ने विकास शील देशों मे विकास का नारा देकर तेजी से पैर पसारे लेकिन इन्होंने विकास शील देशों की अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर डाला। इन कंपनियो ने अपने उत्पाद से बाजार को पाटने के लिए विकास शील देशों की स्वदेशी उत्पादन पध्दती को नष्ट कर दिया ।

बेरोजगारी खत्म करने के लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है जो किसी भी राजनैतिक दल मे दिखाई नहीं देती । बेरोजगारी को लेकर राजनीतिक पार्टिया द्वारा चिंता तो जताई गई लेकिन जमीनी स्तर पर इस ओर किसी भी पार्टी ने काम नही किया । कोर नारेबाजी से बेरोजगारी का समाधान नहीं होगा । इसके लिए सरकार को दृढ़ता से प्रयास करने होगे । यदि बेरोजगारी बढ़ने की यही गति रही और उसे रोका नहीं गया तो इस कारण बढ़ने वाला असंतोष देश के सामने विकट रूप उत्पन्न कर सकता है ।


   देश की गंभीर समस्याओ मे एक समस्या बेरोजगारी भी है । इसमे भी युवा वर्ग की बेकारी विशेष स्थान रखती है । युवा वर्ग की बेकारी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या है । जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है उस अनुपात मे रोजगार के साधन नहीं बढ़ पा रहे है । एक सर्वेक्षण के अनुसार देश मे प्रतिवर्ष 80 से 90 लाख बच्चे जन्म लेते है । रोजगार के अवसर दिलाना सरकार ही नहीं किसी के बूते की बात भी नहीं है ।


भारत की बेरोजगारी और युवा 


जनसंख्या वृध्दि के लिए निमनवर्ग के समाज को दोषी ठहाराया जाता है जो अपने लिए दो समय की रोटी का जुगाड़ भी नहीं कर पाता । झुग्गी बस्तियों मे किसी तरह रहकर वह अपनी गुजर बसर करता है। बावजूद इसके संतान उत्पाती पर ध्यान नहीं देता । ठीक इसके विपरीत शिक्षति लोग जनसंख्या नियंत्रण मे विश्वास रखते है और अधिक संतान से परहेज रखते है। बढ़ती जनसंख्या के कारण ही देश मे अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा है । देश मे शिक्षा की ओर ध्यान देने से दूर दराज के इलाके मे स्कूल तो खुल गये लेकिन इन स्कूलों से शिक्षित होकर निकले युवाओ को रोजगार नहीं मिल प रहे । इनके अलावा विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों से पर्तीवर्ष हजारों युवक डाक्टर, इंजीनियर, वास्तुकार आदि बनकर निकलते है लेकिन ज्यादातर को रोजगार नहीं मिल पाता ।


बेरोजगारी के बढ़ती समस्या 


   शिक्षित होने के कारण आज के युवा कृषि कार्य करना उचित नहीं समझते यदि वे अपने गावों मे ही रहकर कृषि क्षेत्र मे अपनी शिक्षा का प्रयोग करे तो वे अपने खेतों से ज्यादा उपज प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त कर सकते है । शहरों की चकाचौध देख वे गावों से पालायन करते जा रहे है । शहरों मे आने पर रोजगार न मिलने की के कारण गलत कार्यों मे लग जाते है । जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता है । युवा वर्ग की बेकारी का कारण सरकारी नीतिया भी है । सरकारी कार्यालयों मे कई पद वर्षों से खाली पड़े रहते है । सरकारी अधिकारियों व लाल फ़ीताशाही के कारण इन पदों पर नियुक्तिया नहीं हो पाती । आरक्षण भी बेरोजगारी की एक वजह है । आरक्षित पद के लिए उम्मीदवार नहीं मिलने पर उसे सामान्य वर्ग कर दिया जाना चाहिए लेकिन इसमे भी सरकारी नीतिया आड़े आती है ।

 

आशा करता हु की आप को यह पोस्ट पसंद आया होगा, अपने दोस्तों को जरूर शेयर करे धन्यवाद !!!

No comments:

Post a Comment

Please do not sent any spam comment in the box.