Saturday, March 30, 2019

दुल्हन का श्रृंगार





दुल्हन का श्रृंगार
दुल्हन का श्रृंगार




दरअसल, किसी भी नई दुल्हन का श्रृंगार सिंदूर, मंगलसूत्र, चूडी, अंगूठी, पायल और बिछिया के बिना अधूरा माना जाता है. बिछिया नई दुल्हन के पैरो की शोभा तो बढाता ही है, साथ ही उसके सुहागन होने को भी दर्शाता है.


महाकाव्य “रामायण” मे बिछिया की भूमिका का उल्लेख आता है. जब शेतान रावण माता सीता का अपहरण कर लंका ले जा रहा था, तब माता सीता ने बिछिया को भगवान राम की पहचान के लिए फेक दिया था. जिनकी मदद से भगवानराम को सीता की जानकारी मिल सकी थी.


शादी की रस्मो के दौरान दुल्हन के श्रृंगार की रस्मे भी पूरी कराई जाती हैं. इनके तहत जब फेरो की प्रकिया चलाती है, तो दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाना, सिंदूर की रस्म पूरी करना आता है. इन्ही मे दुल्हन को बिछिया पहनाना भी एक महत्वपूर्ण रस्म है. जो शादी की रस्मो के बीच पूरी होती है, और दुल्हन इस रस्म का सारी जिंदगी पालन करती है. ऐसे मे एक सवाल उठना स्वाभाविक है, कि क्या बिछिया दुल्हन के लिए इतनी जरुरी है.....


बिछिया एक्यूप्रेशर का भी काम करती है, जिससे तलवे से लेकर नाभि तक की सभी नाडियां और पेशियां ठिक होती है.



फैशन के नजारिए से तो आज बाजार मे कई प्रकार के डिजाइनर बिछिया का ट्रेड चल रहा है, और कुछ महिलाएं तो इसे फैशन के तौर पर ही अलग ढंग से पहनते हुए नजर आ रही है...


महिलाओ का बिछिया पहनना केवल यह प्रतीक नही है, कि वे शादीशुदा है बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. बिछिया को हमेशा दाहिने और बाएं पैर की दूसरी उंगलीमे पहना जाता है. ऐसा माना जाता है, कि पैर की दूसरी उंगली एक नस के द्वारा महिलाओ के गर्भाशय और दिल से जुडी होती है. बिछिया पहनने से गर्भाशय मजबूत बनाता है और महिलाओ के मासिक धर्म के समय होने वाले रक्त संचार को सही तरीके से चलाने मे मदद करता है.


इसके अलावा बिछिया महिलाओ के प्रजनन अंग को स्वस्थ रखने मे भी मददा करता है...


बिछिया महिलाओ के गर्भाधान मे भी सहायक होती है.


बिछिया चांदी की होती है, और चांदी को बिजली का अच्छा संवाहक माना जाता है धरती से प्राप्त होने वाली ध्रुवीय ऊर्जा को यह औरत के शरीर के अंदर तक पहुचाती है, जिससे महिलाएं फ्रेज महसूस करती है.


इसलिए कहा जा सकता है, कि महिलाओ को स्वस्थ रखने मे बिछिया का महत्व है.

Saturday, March 23, 2019

प्रदूषण


                                                      प्रदूषण


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Pollution



वायु, जल या मिट्टी मे व्यर्थ पदार्थो, गर्मी या शोर के हानिकारक मात्रा मे मिलने को प्रदूषण कहते है. 




प्रदूषण का प्रभाव-
मनुष्य द्वारा संसाधन का प्रयोग करने से उस संसाधन पर प्रभाव पडता है. उदा. श्वसन क्रिया चारो ओर की वायु मे कार्बन डाई-ऑक्साइड की मात्रा बढा देती है. संसाधनो का सावधानीपूर्वक उपयोग करने और उन्हे स्वच्छ रखने से पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रहेगी. लापरवाही से उपयोग करने पर पर्यावरण क्रमश: और अधिक गंदा होता जायेगा.हमे उस गंदे पर्यावरण मे ही रहना पडेगा. यदि हम वायु को प्रदूषित करते है, तो हम उस प्रदूषित वायु मे ही श्वास लेने के लिए मजबूरहो जायेगे. यह पर्यावरण का हम पर प्रभाव है.




प्रदूषण के निम्नलिखित प्रकार है.



वायु प्रदूषण
वायु नाइटोजन, ऑक्सीजन, कार्बन-डाई ऑक्साइड आदि गैसो का मिश्रण है. ये गैसे वायु मे एक निश्चित अनुपात मे मिली होती है. स्कूटर मोटर कार बस ट्र्क और कारखानो आदि से निकलने वाले धुए से तथा पेडो की अंधाधुध कटाई से वायु मे पायी जानी वाली विभिन्न गैसो का संतुलन बिगड जाता है. इससे वायु प्रदूषित हो जाती है.



वायु प्रदूषण क्या होता है-
धुआँ, धूल कणो से भरे स्थानो पर कुछ देर खडे रहने पर कैसा लगता है?
धुआँ और धूल के कणो से भरे स्थानो मे खुले मैदान की अपेक्षा घुटन और आँखो मे जलन महसूस होती है. ऐसा क्यो होता है? इसका कारण है.
धुएँ से भरे स्थान मे डाई-ऑक्साइड गैस अधिक होती है. इससे वायु मे उपस्थित गैसो का अनुपात बिगड जाता है, और वायु प्रदूषित हो जाती है. खुले मैदान मे वायु प्रदूषण अपेक्षाकृत बहुत कम होता है, इसलिए वहाँ ताजगी मालूम होती है और आँखो मे जलन और घुटन नही होती है.



वायु प्रदूषंण के कई कारण होते है.


कारखानो और वाहनो से निकलने वाला धुआँ-
कारखानो अथवा फैकिट्र्यो की चिमनियो से विषैली गैसे निरंतर निकलती रहती है. इन गैसो मे कार्बन डाई-ऑक्साइड और कार्बन के कणो की अधिकता होती है. ये गैसे उस स्थान के वायु संघटन को बिगाड देती है, फलत: वहाँ की वायु प्रदूषित हो जाती है.
वाहनो से निकलने वाले धुए से भी कार्बन डाई-ऑक्साइड तथा अन्य विषैली गैसो का सम्मिश्रण रहता है. इस प्रकार वाहन बडी मात्रा मे वायु प्रदूषित करते रहते है.


ईधन के रुप मे प्रयोग किये जाने वाले पदार्थ-
अधिकांश घरो मे कोयला,लकडी, कंडे या उपले तथा पत्थर का कोयला आदि पदार्थ ईधन के रुप मे प्रयोग किये जाते है, पर इनके जलने से कार्बन डाई-ऑक्साइड तथा अन्य विषैली गैसे मुक्त होकर वायु मे मिल जाती है तथा उसे प्रदूषित कर देती है.


गंदगी

गंदगी भी वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है. जिन स्थानो पर जगह-जगह कूडा करकट,पशुओ का मल-मूत्र आदि गन्दगियो के ढेर लगे रहते है. तथा घरो से निकलने वाले पानी की निकासी की उचित व्यवस्था नही होती है. वहाँ इन वस्तुओ के सडने से भयंकर दुर्गंध उत्पन्न हो जाती है. गन्दगी से अनेक प्रकार के जीवाणु पनपने लगते है, जो वायु प्रदूषित कर देते है.


वायु प्रदूषण से हानिया-
वायु के प्रदूषित हो जाने पर वायु मे हानिकारक तत्वो और जीवाणुओ की संख्या बढ जाती है. अत: ऐसी वायु मे साँस लेने से मनुष्य एवं अन्य को हानि होती है. यही नही,प्रदूषित वायु भवनो तक को हानि पहुँचाती है.
हम ऐसे वातावरण मे अधिक समय तक नही रह सकते है, जिन लोगो को ऐसे प्रदूषित वातावरण मे लम्बे समय तक रहना पडता है, वे खाँसी दमा, फेफडो की बीमारी और नेत्र रोगों से पीडित हो जाते है.


वायु प्रदूषण की रोकथाम-

अधिक संख्या मे पेड लगाने चाहिए.
वाहनो के इंजनो को प्रदूषण मुक्त बनाया जाना चाहिए.
कारखानो से निकलने वाले धुएँ को हानिरहित करने के उपाय करने चाहिए.
गोबर से जैव गैस (गोबरगैस) बनाई जा सकती है,जिसके बनने के बाद शेष पदार्थ को अच्छे खाद के रुप मे प्रयोग किया जा सकता है.
कूडे को ढक्कन वाले कूडेदान मे डालना चाहिए. नगर के कूडे को शीघ्र इकट्ठा करना व उचित स्थान पर डालना आवश्यक है.



अनेक कारखाने बडी मात्रा मे जल का उपयोग करते है. अत: वे प्राय नदियो के किनारे होते है. औघौगिक क्षेत्रो मे बचे हुए द्रव पदार्थो को नदी मे डाल दिया जाता है. नगर के उद्योगो से भी द्रव व्यर्थ पदार्थ घरेलू वाहित मल के साथ बहते है, जिसे नदी या समुंद्र मे डाल दिया जाता है. जिसके कारण जलीय कारण पौधो और जंतुओ को हानि पहुँचती है और वे मर जाते है.
नदी का यह प्रदूषित जल फसलो की सिंचाई के अयोग्य होता है. यदि फसलो को इस जल से सींचा जाता है, तो फसल कम होती है. अनाज और सब्जियोमे रसायन पहुँच जाते है, जो अंत मे मनुष्य को हानि पहुँचाते है. नदी का जल शुद्ध करके नगरो मे पीने के लिए सप्लाई किया जाता है, किंतु इसमे से विलेय रसायनो को अलग नही किया जा सकता है. जब लोग इस जल को पीते है, तो उन्हे विचित्र रोग हो जाते है.
पेट्रोलियम के बिखरनेसे समुंद्र एवं नदियाँ प्रदूषित हो रहे है. प्रति वर्ष तेल निकलने और उसे ढोनेमे लगभग दस लाख टन तेल समुद्र मे बिखर जाता है. यह नाव और जहाज चलाने समुंद्र के पौधो और जंतुओ तथा समुंद्र तट के जीवन के लिए संकटपूर्ण है. सबसे ज्यादा संकट समुंद्री पक्षियो को है. तेल उनके उडने और तैरने मे रुकावट पैदा करता है.


जल प्रदूषण की रोकथाम-

कारखानो एवं फैकिट्र्यो के हानिकारक पदार्थ नदियो मे नही डालने चाहिए. डालने से पहले उन्हे हानिरहित बना लेना चाहिए.




भोंपू, लाउडस्पीकर,कारखानो की मशीनो और दौडती गाडियो का शोर प्रतिदिन जोर पकडता जा रहा है. यह कानो के लिए कर्कश हो रहा है. अधिक पास से होने वाले शोर कानो को प्रभावित कर रहा है. कानो के भिन्न रोग पनपते जा रहे है. शोर के कारण शांति भंग हो रही है. शोर होने से हम न तो दिन मे हि और न हि रात मे शांति अनुभव कर सकते है. अधिक शोर रोगी व्यक्ति और स्वस्थ व्यक्ति दोनो के लिए हानिकारक है.

घृतकुमारी


                               घृतकुमारी


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यह भारतवर्ष मे सर्वत्र प्राप्त होती है. प्राय: इसको लोग घरो के अंदर गमलों आदि मे लगा लेते है.


गुण:

यह पचने मे भारी, रिनग्ध, कटु, शीतल और विपाक मे तिक्त है. घृतकुमारी दस्तावर, शीतल, तिक्त, नेत्रो के लिए हितकारी, रसायन, मधुर, वीर्यवध्क और वात, विष गुल्म, तथा त्वचा रोगनाशक है.

प्रयोग:

इसका गूदा आँखो मे लगाने से लाली मिटती है, गरमी दूर होती है, वायरल मे यह लाभ करती है.
इसके गूदे पर हल्दी डालकर थोडा गरम कर नेत्रो पर बांधने से नेत्रो की पीडा मिट जाती है.

कर्णशूल-
इसके रस को गरम कर जिस कान मे शूल हो, उससे दूसरी तरफ के कान मे 2-2 बूंद टपकाने से आराम होता है.

कान के कीडे-
गर्मी के कारण कान मे कीडे पड गये हो तो, एलुआ पानी मे पीसकर कान मे 2-2 बूद डालनेसे कान के कीडे मर जाते है.

उदरगांठ-
इसके गूदे को पेट के ऊपर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है. कठिन पेट मुलायम हो जाता है. और आँतो मे जमा हुआ मल बाहर निकल जाता है.

मासिक धर्म-
कुमारी के 10 ग्राम गूदे पर 500 मि.ग्र. पलाश का क्षार बुरक कर दिन मे 2 बार सेवन करने से मासिकधर्म शुध्द होने लगता है.

मधुमेह मे घीक्वार का 5 ग्राम गूदा 250 से 500 मि.ग्रा. गूडूची सत्वके साथ लेने से लाभ होता है.

तिल्ली-
इसके गूदे पर सुहागा बुरक कर खिलाने से तिल्ली कट जाती है.

गठिया-
इसका कोमल गूदा नियमित रुप से 10 ग्राम की मात्रा मे रोज खाने से गठिया मिटती है.

यदि फोडा पकने के नजदीक हो तो घृतकुमारी का गूदा गरम करके बांधनेसे फोडा और शीध्रता से पककर फूट जाता है.

रित्रयो के स्तन मे चोट आदि के कारण या अन्य किसी कारण से गांठ या सूजन होने पर इसकी जड की कल्क बनाकर उसमे थोडा हरिद्रा चूर्ण गरम करके बांधने से लाभ होता है.


Wednesday, March 20, 2019

परी की कहानी


अफ्रीका के किसी पर्वत पर डायना नाम की परीरहती थी. कहते है, कि परी के पास अमृत की कुछ बूदें थीं.



angel-story



कांगो नदी के निकट कुछ गाँव थे. वहीं एंडीमियन नाम का गडरिया रहता था. वह गरीब किसानों की मदद करता था. गाँव वाले उसे बहुत मानते थे. वह देवलोक मे भी प्रसिध्द हो गया था. धीरे-धीरे देवताओं मे उसके प्रति ईष्या जाग उठी. वे कहते एंडीमियन कभी भी देवता नही बन सकता. पर देवलोक मे रहने वाली नारियाँ उसे देवता की तरह मानती थीं. एक दिन उन्होने देवताओ से कहा- “एंडीमियन को देवता बनने से कोई नहीं रोक सकता”.


“ हम एंडीमियन को एक ऐसी जडी सुघा देंगे जिससे वह काफी दिनो के लिए बेहोश हो जाएगा.” – देवताओ ने कहा.


फिर उन्होने मिलकर एंडीमियन के खिलाफ साजिश रची.

Angel story


एक देवता मौका मिलते ही जंगल में जा पहुँचा ! एक जगह एंडीमियन आराम कर रहा था. देवता ने उसे बेहोशी की जडी सुघा दी. वह बेहोश हो गया. देवता चला गया. तभी उधर से गाँव वाले गुजरे. उन्होने एंडीमियन को देखा तो चौंके उन्होने एंडीमियन को हिलाया-डुलाया, पर उसने कोई हरकत नही की. वे उसे मरा जान, वहीं छोड गए...


एक दिन उधर से डायना परी निकली ! उसने रास्ते मे एंडीमियन को बेहोशी की हालत मे देखा. परी ने भी उसके बारे मे बहुत कुछ सुना था. तभी कुछ पक्षियों ने उसे घेर लिया.


 उन्होने परी से कहा- “ आप इसे जीवित कर दें !  डायना ने उनका कहा मान.



परी की कहानी / angel story




अपना हाथ एंडीमियन के माथे पर रख दिया. सहसा वह उठ बैठा. उसने परी को धन्यवाद दिया और घर की ओर चल दिया.
एंडीमियन घर पहुँच, तो पूरे गाँव मे खुशी की लहर दौड गई.


अब वह पहले से भी अधिक परोपकार करने लगा.




यह खबर डायना को लगी. उसने सोचा-“ अब मुझे एंडीमियन को देवता बनाने मे देर नही करनी चाहिए !”


यह सोच डायना परी उसके पास आई. उसने एंडीमयन को अमृत की दो बूदें पिला दी. वह अमर हो गया.