वृक्षारोपण
वृक्षारोपण मानव समाज का साँस्कृतिक दायित्व है तथा इसे प्रमाणित किया जा सकता है । मानव सभ्यता का उदय और आरंभिक आक्षय प्रकृति यानि वन वृक्ष ही रहे है । उसकी सभ्यता सस्कृति के आरंभिक विकास का पहला चरण भी वन वृक्षो की सघन छाया मे ही उठाया गया ।
वृक्षारोपण |
यहा तक की उसकी समृद्धतम साहित्य कला का सृजन और विकास ही वनालियों की सघन छाया और की गोद मे ही संभव हो सका, यह एक पुरातत्व एव इतिहास सिद्ध बात है । आरंभ मे मनुष्य वनों मे वृक्षो पर या उनसे ढकी कन्दराओ मे ही रहा करता था । वृक्षो से प्राप्त फल फूल आदि खाकर या उसकी डालियों को हथियार की तरह प्रयोग मे ला उनसे शिकार करके अपना पेट भरा करता था ।
बाद मे बचे खुचे फल और उनकी गुठलियों को दुबारा उगते देखकर ही मानव ने खेती बाड़ी करने की प्रेरणा और सीख प्राप्त की । वृक्षो छाल का ही सदियों तक आदि मानव वरत्र रूप मे प्रयोग करता रहा, बाद मे वन मे रहकर तपस्या करने वालों, वनवासियों के लिए ही वे रह गए थे । इसी प्रकार आरम्भिक वैदिक ऋचाओ की रचना या दर्शन भए सघन वनालियों मे बने आश्रमों मे रहने वाले लोगों ने किए । इतना ही नहीं आरंभ मे ग्रन्थ लिखने के लिए कागज के बाजाय जिस सामग्री का प्रयोग किया गया वे भोजपत्र भी विशेष वृक्षो के पत्ते थे ।
सस्कृति की धरोहर माने जाने वाले कई ग्रन्थों की भोजपत्रों
पर लिखी गई पाण्डुलिपिया आज भी कही कही उपलब्ध है ।
वृक्षारोपण का सामान्य एव विशेष सभी का अर्थ है – वृक्ष लगाकर
उन्हे उगाना । प्रयोजन है प्रकृति का संतुलन बना रहे । वन संपदा के रूप मे प्रकृति
से हमे जो कुछ भी प्राप्त होता या रहा है, वह नियमपुर्वक हमेशा आगे भी प्राप्त होता
रहे ताकि हमारे समाज जीवन का संतुलन बना रहे, पर्यावरण की पवित्रता और संतुलन नियमित
बने रहे । मानव सृष्टी का सर्व प्राणी है । उसका जीवन सुखी, समृद्ध एव संतुलन रह सके,
साँस्कृतिक सामाजिक एव व्यापक मानवीय दृष्टी से इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है
? निश्चय ही अन्य कोंई नहीं । इस कारण भी वृक्षारोपण करना एक प्रकार का सहज साँस्कृतिक
दायित्व स्वीकार किया गया है ।
मानव सभ्यता ने सस्कृति के विकास की दिशा मे कदम बढाते हुए गुफाओ से बाहर निकल और वृक्षो से नीचे उतर कर जब झोपड़ियों का निर्माण आरंभ किया तब तो वृक्षो की शाखाए पत्ते सहायक सामग्री बने ही, बाद मे मकानों भवनों की परिकल्पना साकार करने के लिए भी वृक्षो की लकड़ी से ही किया जा रहा है । कुर्सी, टेबिल, सोफासैट आदि मुख्यत: लकड़ी से ही बनाए जाते है । हमे अनेक प्रकार के फल फूल और औषधियों भी वृक्षो से प्राप्त होती ही है, कई तरह की वनस्पतियों का कारण भी वृक्ष ही है । इतना ही नहीं, वृक्षो के कारण ही हमे वर्षा जल एव पेयजल आदि की भी प्राप्ति हो रही है ।
वृक्षो की पत्तियों
धरती के जल का शोषण कर सूर्य किरणे और प्रकृति बादलों को बनाती है, और वर्षा कराया
करती है । कल्पना कीजिए निहित स्वार्थी मानव जिस बेरहमी से वनों वृक्षो को काटता जा
रहा है, यदि उस क्षति की पूर्ति के लिए साथ साथ वृक्षारोपण रक्षण न होता रहे, तब धरती
के एकदम वृक्ष शून्य हो जाने की स्थिति मे
मानव तो क्या, समूची जीव सृष्टी की क्या दशा होगी ? निश्चय ही वह स्वत: ही जलकर राख
का ढेर बन उड़कर अतीत की भूली बिसरी कहानी बनकर रह जाएगा ।
वृक्षारोपण के फायदे:-
प्राचीन भारत मे निश्चय ही वृक्षारोपण को एक उदान्त साँस्कृतिक दायित्व माना जाता था । तब तो मानव समाज के पास ऊर्जा और ईधन का एकमात्र स्रोत भी वृक्षो से प्राप्त लकड़ी ही हुआ करती थी, जबकि आज कई प्रकार के अन्य स्रोत भी उपलब्ध है । इस कारण उस समय के लोग इस तथ्य को भली भाति समझते थे की यदि हम मात्र वृक्ष काटते रहेगे नहीं उगाएगे, तो एक दिन वनों की वीरानगी के साथ मानव जीवन भी वीरान बनकर रह जाएगा । इसी कारण एक वृक्ष काटने पर दो नए वृक्ष उगाना वे लोग अपना धर्म एव साँस्कृतिक कर्तव्य माना करते थे ।
जो हो अभी भी बहुत देर नहीं हुई है । अब भी निरंतर वृक्षारोपण और उनके
रक्षण के साँस्कृतिक दायित्व का निर्वाह कर सृष्टी को अकाल भावी विनाश से बचाया जा
सकता है । व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर इस ओर प्राथमिक स्तर पर ध्यान दिया जाना
परं आवश्यक है ।
जैसा की आप सब जानते है है कुछ सालों से कोरोना का कहर जा रहा
है, और वृक्षो के न होने से आक्सीजन को कमी काफी महसूस लगने लगी । उस व्यक्त लोगों
को वृक्षो के बारे मे इसकी अहमियत मालूम पड़ी ।
अब हमे सकल्प करना चाहिए, की हमे कम से कम अपने जन्मदिन पर दो
वृक्ष जरूर लगाना चाहिए ।
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धन्यवाद !!!😃😃
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