Wednesday, October 16, 2019

करवा चौथ


                                                                         करवा चौथ


करवा चौथ
करवा चौथ




करवा चौथ व्रत-कथा:-

यह व्रत प्राचीन है. इसका प्रचलन महाभारत से भी पूर्व का है. यह व्रत सौभाग्यवती महिलाओ के लिए उत्तम माना गया है. सामान्य मान्यता के अनुसार सुहागिने इस व्रत को अपने पति कि लम्बी उम्र के लिए रखती है. कहा जाता है इसे पाण्डवो की पत्नी द्रोपदी ने भी किया था.

यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष को चन्द्रोदय चतुर्थी मे किया जाता है.

व्रत की विधि:-

कार्तिक मास के कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ कहते है. सुहागवती रित्रयो के लिए यह बहुत ही उत्तम व्रत है. रित्रया इस व्रत को पति के लम्बे उम्र के लिए करती है. इस दिन सुहागिन स्त्रिया चावल पीसकर दीवार पर करवा चौथ बनाती है, जिसे वर कहते है.

इस करवा चौथ मे पति के अनेक रूप बनाये जाते है तथा सुहाग की वस्तुएं जैसे चूडी बिंदी बिछुआ मेहदी और महावर आदि के साथ दूध देने वाली गाय करुआ बेचने वाली कुम्हारी महावर लगाने वाली नाइन चूडी पहनाने वाली मनिहारिन सात भाई और उनकी इकलौती बहन सूर्य चंद्र्मा गौरा और पार्वती आदि देवी देवतओ के भी चित्र बनाये जाते है.

सुगागिन स्त्रियो को इस दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए. रात्रि को जब चंद्रमा निकल, आये तब उसे अर्घ्र देकर भोजन करना चाहिए. पीली मिट्टी की गौरा बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए.

नोट:-


यदि दीवार पर करवा चौथ बनाने मे कोई असुविधा हो तो करवा चौथ का चित्र बाजार से लाकर दीवार पर चिपकाया जा सकता है.

व्रत कथा:-

एक साहूकार था. जिसके सात बेटे एक बेटी थी. सातो भाई व बहन एक साथ बैठकर भोजन करते थे. एक दिन कार्तिक की चौथ का व्रत आया, तो भाई बोला कि बहन... आओ भोजन करे. बहन बोली कि आज करवा चौथ का व्रत है, चांद उगने पर ही खाऊगी. तब भाईयो ने सोचा कि चांद उगने तक बहन भूखी रहेगी तो एक भाई ने दीया जलाया, दूसरे भाई ने छलनी लेकर उसे ढंका और नकली चांद दिखाकर बहन से कहने लगे कि चल चांद उग आया है अघ्र्य दे ले.


बहन अपनी भाभियो से कहने लगी कि चलो अर्ध्य दे तो भाभिया बोली तुम्हारा चांद उगा होगा हमारा चांद तो रात को उगेगा.बहन ने जब अकेले ही अर्घ्य दे दिया और खाने लगी तो पहले ही ग्रास मे बाल आ गया. दूसरे ग्रास मे कंकड आया और तीसरा ग्रास मुंह की ओर किया तो उसकी ससुराल से संदेशा आया कि उसका पति बहुत बीमार है, जल्दी भेजो मां ने तब लड्की को विदा किया और कहा कि रास्ते मे जो भी मिले उसके पांव लगना और जो कोई सुहाग का आशीष दे तो उसके पल्ले मे गाठ लगाकर उसे कुछ रुपये देना. बहन जब भाइयो से विदा हुई तो रास्ते मे जो भी मिला उसने यही आशीष दी कि तुम सात भाइयो की बहन तुम्हारे भाई सुखी रहे और तुम उनका सुख देखो. 


सुहाग का आशीष किसी ने भी नही दिया जब वह ससुराल पहुची तो दरवाजे पर उसकी छोटी ननद खडी थी.वह उसके भी पांव लगी तो उसने कहा कि सुहागिन रहो, सपूती हो तो उसने यह सुनकर पल्ले मे गांठ बांधी और ननद को सोने का सिक्का दिया. तब भीतर गई तो सास ने कहा कि पति धरती पर पडा है, तो वह उसके पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई.

बाद मे सास ने दासी के हाथ बची खुची रोटी भेज दी. इस प्रकार से समय बीतते-बीतते मार्गशीर्ष की चौथ आई तो चौथ माता बोली करवा ले, करवा ले, भाइयो की प्यारी करवा ले. लेकिन जब उसे चौथ माता नही दिखलाई दी, तो वह बोली हे माता ! आपने मुझे उजाडा तो आप ही मेरा उध्दार करोगी. आपको मेरा सुहाग देना पडेगा. तब उस चौथ माता ने बताया कि पौष कि चौथ आयेगी वह मेरे से बडी है, उसे ही सब कहना. वही तुम्हारा सुहाग वापस देगी.


पौष की चौथ आकर चली गई, माघ की चली गई, फाल्गुन की चली गई, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ और श्रावण, भादो की सबी चौथ आयी यही कहकर चली गई कि आगे वाली को कहना.असौज कि चौथ आई तो उसने बताया कि तुम पर कार्तिक कि चौथ नाराज है, उसी ने तुम्हारा सुहाग लिया है. वही वापस कर सकती है. वही आयेगी तो पांव पकडकर विनती करना. यह बताकर वह भी चली गई.


जब कार्तिक की चौथ आई तो वह गुस्से मे बोली- भाइयो की प्यारी करवा ले, दिन मे चांद उगानी करवा ले.व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले, तो यह सुनकर वह चौथ माता को देखकर उसके पांव पकडकर गिडगिडाने लगी. हे चौथ माता मेरा सुहाग तुम्हारे हाथो मे है आप ही मुझे सुहागिन करे. तो माता बोली- पापिन, हत्यारिन मेरे पांव पकड्कर क्यो बैठ गई? 


तब वह बोली कि  जो मुझसे भूल हुई उसे क्षमा कर दो, अब भूल नही करूगी, तो चौथ माता ने प्रसन्न होकर आंखो से काजल, नाखूनो मे से मेहदी और टिके मे से रोली लेकर छोटी उगली से उसके आदमी पर छीटा दिया तो वह उठकर बैठ गया और बोला कि आज मै बहुत सोया.


वह बोली क्या सोये, मुझे तो बारह महीने हो गये, अब जाकर चौथ माता ने मेरा सुहाग लौटाया. तब उसने कहा कि जल्दी से माता का पूजन करो.


जब चौथ की कहानी सुनी, करवा का पूजन किया तो प्रसाद खाकर दोनो पति पत्नी चौपड खेलने बैठ गये. नीचे से दासी आई, उसने उन दोनो को चौपड पांसे से खेलते देखा तो उसने सासु जी को जाकर बताया. तब से सारे गाव मे यह बात प्रसिध्द हो गई कि सब स्त्रिया चौथ का व्रत करे तो सुहाग अटल रहेगा.




जिस तरह से साहूकार की बेटी का सुहाग दिया उसी तरह से चौथ माता सब को सुहागिन रखे. यही करवा चौथ के उपवास की सनातन महिमा है.

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