Wednesday, April 10, 2019

दहेज प्रथा


  आज दहेज की प्रथा को देश भर में बुरा माना जाता है ! इसके कारण कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं, कितने घर बर्बाद हो जाते हैं. आत्महत्याएँ भी होती देखी गई है.



दहेज प्रथा
दहेज प्रथा



 नित्य प्रतिदिन तेल डालकर बहू द्वारा अपने आप को आग लगाने की घटनाएं भी समाचार न्यूज़पत्र और टीवी में देखी वह पढ़ी जाती हैं.  पति और सास ससुर बहु जला देते हैं हत्याएं कर देते हैं इसलिए दहेज प्रथा को आज कुरीति माना जाने लगा है.

एक पुरुष के जीवन में स्त्री शीतल जल की तरह होती है जो उसके जीवन को अपने प्यार और सहयोग से सुखी और शांतिपूर्ण बनाती है। लेकिन आज भारत के समाज में जो अनेक कुरीतियाँ फैली हुई हैं वो सब भारत के गौरवशाली समाज पर एक कलंक के समान हैं।
जाति, छूआछूत और दहेज जैसी प्रथाओं की वजह से ही विश्व के उन्नत समाज में रहने पर भी हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। समय-समय से कई लोग और राजनेता इसे खत्म करने की कोशिश करते रहते हैं, लेकिन इसका पूरी तरह से नाश नहीं हो पाया है। दहेज प्रथा दिन--दिन और अधिक भयानक होती जा रही है. 
भारतीय समाजिक जीवन में अनेक अच्छे गुण हैं, परंतु कुछ बुरी नीतियां भी उनमें घुन की भांति लगी हुई हैं. इनमें एक  रीति दहेज प्रथा की भी है
विवाह के साथ ही पुत्री को दिए जाने वाले सामान को दहेज कहते हैं. इस दहेज मे बर्तन, वस्त्र, पलंग, सोफा रेडियो, मशीन, टेलीविजन आदि  की बात ही क्या है, हजारों रुपए नकद भी दिए जाते हैं.इस  दहेज को पुत्री के स्वस्थ शरीर सौंदर्य और सुशीलता के साथ ही जीवन को सुविधा देने वाला माना जाता है. दहेज प्रथा का इतिहास देखा जाए तब इसका प्रारम्भकिसी बुरे उद्देश्य से  नहीं हुआ था. 
प्राचीनकाल में बेटी को माता-पिता के आशीर्वाद के रूप में अपनी समर्थ शक्ति के अनुसार वस्त्र, गहने, और उसकी गृहस्थी के लिए सामान भेंट में दिया जाता था। इस दहेज का उद्देश्य वर वधु की गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाना था। प्राचीनकाल में लडकी का मान-सम्मान ससुराल में उसके व्यवहार और संस्कारों के आधार पर तय किया जाता था कि उसके लाए हुए दहेज पर।

दहेज प्रथा का उल्लेख मनुस्मृति में ही प्राप्त हो जाता है, जबकि वस्त्राभूषण युक्त कन्या के विवाह की चर्चा की गई है. गौएँ  तथा वाहन लेने का उल्लेख किया गया है

समाज में जीवन उपयोगी सामग्री देने का भी मनुस्मृति में वर्णन  किया गया है, परंतु कन्या को दहेज देने के 2 प्रमुख  कारण थे
पहला तो यह कि माता-पिता अपनी कन्या को दान देते समय सोचते थे कि वस्त्र आदि  सहित कन्या को कुछ सामान दे देने उसका जीवन सुविधा पूर्वक चलता रहेगा, और कन्या को अपने जीवन में कोई कष्ट ना हो. 
दूसरा कारण था कि, घर में अपने भाइयों के समान भागीदारी है चाहे वह अचल संपत्ति नहीं लेती थी, परंतु विवाह  के काल में उसे यथाशक्ति धन, पदार्थ दिया जाता था, ताकि वह सुविधा  से जीवन व्यतीत कर के और इसके पश्चात भी उसे जीवन भर सामान मिलता रहता था !  घर भर में उसका सम्मान हमेशा बना रहता था

पुत्री  जब भी पिता के घर आती थी उसे अवश्य ही धन आदि दिया जाता था. इस प्रथा के दुष्प्रभाव से भारत के इतिहास में घटनाएं भरी पड़ी हैं और निर्धन व्यक्तियों को दहेज देने ना देने की स्थिति में दोनों में कष्ट सहने पड़ते रहे. दहेज ना देने से दुख भोगना पड़ता है. समय में इस सामाजिक उपयोगिता की धीरे धीरे अपना बुरा रुप  धारण करना आरंभ कर दिया है. और लोगों ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के लिए भरपूर धन देने की प्रथा चला दी

इस प्रथा को खराब करने का आंरभ धनी वर्ग से  ही हुआ है, क्योंकि धन की चिंता नहीं होती और अपनी लड़कियों के लिए लड़का खरीदने की शक्ति रखते हैं. इसलिए दहेज प्रथा ने बुरा रूप धारण कर लिया और समाज में या कुरीति सी बन गई

अब इसका निवारण दुश्वार हो रहा है. नौकरी पेशा या निर्धनों को इस प्रथा से अधिक कष्ट पहुंचता है. अब तो बहुत से लड़के को बैंक का एक चेक मान लिया जाता है, कि जब लड़की वाले आए तो उसकी खाल  खींचकर पैसा इकट्ठा कर लिया जाए, ताकि लड़की का विवाह कर देने के साथ ही उसका पिता बेचारा कर्ज से ही दबा जाए

दहेज प्रथा को सर्वदा बंद नहीं किया जाना चाहिए परंतु कानून बनाकर एक निश्चित मात्रा तक दे देना चाहिए

अब तो पुत्री और पुत्र का पिता की संपत्ति में समान भाग स्वीकार किया गया है इसलिए भी दहेज को कानूनी रूप दिया जाना चाहिए. और लड़कों को माता-पिता द्वारा मनमानी धन दहेज लेने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए

जो लोग दहेज में मनमानी कर रहे उन्हें दण्ड देकर इस दिशा में सुधार करना चाहिए. दहेज प्रथा को भारतीय समाज के माथे पर कलंक के रूप में नहीं रहने देना चाहिए.

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा अन्य सम्बन्धियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें-शादी होगी तो बिना दहेज के होगी  

इन युवकों को चाहिए कि वे उस सम्बन्धी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देते है

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